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पर्वतना बहु मध्य देशभागथकी गोस्तुभ नामना आवास पर्वतनी पश्चिम तरफना छेल्ला अंत सुधी बाणु हजार योजननुं अबाधाएं आंतरं कर्तुं छे (३) । ए ज प्रमाणे चारे आवास पर्वतनुं आंतरुं जाणवुं (४) ॥
कार्थ:- हवे वाणुमा स्थानक विषे कांइक लखे छे - बाणु प्रतिमा एटले विशेष प्रकारना अभिग्रहो का छे. ते प्रतिमाओ दशाश्रुतस्कंधनी निर्युक्तिने अनुसारे देखाडे छे—तेमां पांच प्रतिमाओ कही छे, ते आ प्रमाणे- वे प्रकारनी समाधि प्रतिमा १, उपधान प्रतिमा २, विवेकप्रतिमा ३, प्रतिसंलीनता प्रतिमा ४ अने एकलविहार प्रतिमा ५० तेमां पहेली समाधि प्रतिमा वे प्रकारनी आ प्रमाणे श्रुत समाधि प्रतिमा अने चारित्र समाधि प्रतिमा. अहीं दर्शनने ज्ञाननी अंदर गणेलुं होवाथी दर्शन प्रतिमा जुदी कहेवाने इच्छी नथी. तेमां श्रुत समाधि प्रतिमाना बासठ भेद छे. केवी रीते ? ते कहे छे - आचारांग नामना पहेला श्रुतस्कंधमां पांच (५) वीजा श्रुतस्कंधमां साडत्रीश (३७), स्थानांगसूत्रमां सोळ ( १६ ) व्यवहारसूत्र मां चार (४). आ सर्व मळीने बासठ (६२) भेद थया. जो के आ प्रतिमाओ चारित्रना स्वभाववाळी छे तोपण विशेष प्रकारना श्रुतधारीने ज ते होय छे, तेथी श्रुतना प्रधानपणाने लीधे श्रुत समाधि प्रतिमा तरीके कही छे एम संभवे छे, तथा सामाकि, छेदोपस्थापनीय विगेरे चारित्र समाधि प्रतिमाओ पांच छे. तथा वीजी उपधान प्रतिमा वे प्रकारनी छे - भिक्षु प्रतिमा अने श्राद्धप्रतिमा. मां भिक्षुप्रतिमा ' मासाइ सत्तंता '-' एक मासथी आरंभीने सात मास पर्यंत ' इत्यादि पूर्वे बार कही छे ते जाणवी तथा अग्यार प्रकारनी श्रावक प्रतिमा पण ' दंसणवय ' - दर्शन, व्रत विगेरे पूर्वे कही छे ते जाणवी. सर्वे मळीने वीश थइ. तथा त्रीजी विवेक प्रतिमा तो एक ज जाणवी. अहीं क्रोधादिक आभ्यंतर अने गण, शरीर, उपधि,