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समवायः ८५॥
सो ने चोराणुं स्थान (आंकडा) आवे छे." आ स्थानोना नाम अनुक्रमे आ प्रमाणे जाणवा-पूर्वांग, पूर्व, त्रुटितांग, समवायाङ्ग त्रुटित विगेरे (१५)। 'चउरासीतिमित्यादि'-(चोराशी संख्याना स्थानकना विवरण नो आ लेख छ) अहीं तेनो विभाग सूत्र॥ आ प्रमाण
आ प्रमाणे छे-"वत्रीश लाख १, अहावीश लाख २, चार लाख ३, आठ लाख ४ अने चार लाख ५ विमानो पहेलेथीघो\ अंगा पांचमा ब्रह्म देवलोक सुधीमां (८४ लाख) छे. त्यारपछी लांतकमां पचास हजार ६, शुक्रमां चाळीश हजार ७, सहस्रारमा । ॥१८१॥
छ हजार ८, आनत-प्राणतमां चार सो ९-१०, आरण-अच्युतमा त्रण सो ११-१२, त्रण अधस्तन ग्रेवेयकमा एक सो ने अग्यार, त्रण मध्यम ग्रेवेयकमां एक सो ने सात, त्रण उपरितन 7वेयकमां एक सो, तथा अनुत्तरमां पांच विमानो छ ।
(कुल ८४९७०२३ ).'भवंतीति मक्खायं ति'-आ विमानो आ प्रमाणे होय छे, ए हेतु माटे भगवाने सर्वज्ञपणु Pa' होवाथी अने सत्यवादीपणुं होवाथी कया छे (१७) ॥ सूत्र-८४ ॥ - हवे पंचाशीमुं स्थान कहे छे--
। मू०-आयारस्स णं भगवओ सचूलियागस्स पंचासीइ उद्देसणकाला पन्नत्ता। १ । धायइसंडस्स णं मंदरा पंचासीइ जोयणसहस्साइं सबग्गेणं पन्नत्ता । २ । रुयए णं मंडलियपवए पंचासीइ जोयणसहसाई सव्वग्गेणं पन्नत्ते । ३ । नंदणवणस्स णं हेट्ठिल्लाओ चरमंताओ सोगंधियस्स | कंडस्स हेट्ठिल्ले चरमंते एस णं पंचासीइ जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पन्नत्ते । ४॥ सूत्रम्-८५ ॥
॥१८१॥
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