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समवाय ८२॥
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विवक्षा होवाथी ज आ वाशीमा स्थानकमां कडं छे, एम जाणवू. जो के जंबूद्वीपमां पांसठ (६५) ज मंडळो छे, तो पण समवायाङ्ग जंबूद्वीप संबंधी सूर्यनी गतिनो विषय होवाथी वाकीना (बहारना) मंडळो पण जंबूद्वीपना ज विशेषण तरीके कयां छे (१)।
सूत्र ।। 'समणे इत्यादि -आषाढ मासना शुक्लपक्षनी छथी आरंभीने बाशी रात्रिदिवस गया अने ताशीमो रात्रिदिवस चोथं अंग। वर्ततो हतो त्यारे एटले आश्विन मासना कृष्णपक्षनी तेरशे एक गर्भाशयथी एटले देवानंदा ब्राह्मणीनी कुक्षिथकी बीजा
गर्भमां एटले त्रिशला नामनी क्षत्रियाणीनी कुक्षिमा शकेंद्रनी आज्ञानो अमल करनारा हरिणेगमेपी नामना देववडे लइ ॥१७७॥
जवाया. आ सूत्र बाशी रात्रिदिवसने आश्रीने वाशीमा स्थानमां कहेवामां आव्यु छे, परंतु त्राशीमा रात्रिदिवसने आश्रीने त्राशीमा स्थानमां पण कहेशे. (२) । 'महाहिमवंतस्सेत्यादि'-महाहिमवान नामे बीजो वर्षधर पर्वत बसो योजन ऊंचो छ, तेना उपला चरमांतथी सौगंधिक कांडनो नीचेनो चरमांत बाशी सो योजनप्रमाण छे. केवी रीते ? ते कहे छेरत्नप्रभा पृथ्वीना त्रण कांड छे-खरकांड, पंककांड अने अब्बहुलकांड. तेमा पहेलो कांड सोळ प्रकारे छे. ते आ प्रमाणे-रत्नकांड १, वज्रकांड २, वैडूर्यकांड ३, लोहिताक्षकांड ४, मसारगल्लकांड ५, हंसगर्भकांड ६, पुलककांड ७, सौगंधिककांड ८, ज्योतीरसकांड ९, अंजनकांड १०, अंजनपुलककांड ११, रजतकांड, १२, जातरूपकांड १३, अंककांड १४, स्फटिककांड १५ अने रिष्ठकांड १६. आ सर्वे कांड हजार हजार योजनप्रमाण छे. तेथी सौगंधिककांड आठमो होवाथी आठ हजार एटले एंशी सो योजन थया अने बसो योजन महाहिमवान ऊंचो छे, तेथी बाशी सो योजन थया ( ३)। ए ज प्रमाणे रुक्मी नामना पांचमा वर्षधर पर्वतर्नु पण कहेवु. केमके ते पण महाहिमवाननी जेटलो ज ऊंचो छ (४)॥ सूत्र-८२ ॥
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