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श्री समवायाङ्ग सूत्र ॥
चो अंग
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सौभाग्य करवानुं ज्ञानादिक ४६, दौर्भाग्यकर - दौर्भाग्य करवानुं ज्ञानादिक ४७, विद्यागत - रोहिणी, प्रज्ञप्ति विगेरे विद्या संबंधी ज्ञानादिक ४८, मंत्रगत - मंत्रनी साधना विगेरेनुं ज्ञानादिक ४९, रहस्यगत - गुप्त वस्तु, वात विगेरेनुं ज्ञानादिक ५०, सद्भाव - दरेक वस्तुनी हकीकत जाणवी ५१, चार- सैन्यनुं प्रमाण जाणवुं विगेरे ५२, प्रतिचार - सैन्यने युद्धमां उतारवानी कळा ५३, व्यूह - सैन्यनी रचनानी कळा ५४, प्रतिव्यूह - शत्रुसैन्यना व्यूहनी सामे तेनो पराजय करवा माटे सामुं व्यूह रचवानी कळा ५५, स्कंधावारमान - सैन्यना पडाव नांखवाना स्थळनुं प्रमाण जाणवुं ५६, नगरमान - शहेर बसाववाना स्थाननुं प्रमाण जाणवुं ५७, वस्तुमान - वस्तुनुं प्रमाण जाणवुं ५८, स्कंधवारनिवेश - सैन्यनो पडाव नांवानुं ज्ञानादिक ५९, वस्तुनिवेश - दरेक वस्तुने स्थापन करवाना विधिनुं ज्ञानादिक ६०, नगरनिवेश -नगर वसाववा संबंधी ज्ञानादिक ६१, ईपदर्थ - थोडाने घणुं करी बताववानी कळा ६२, त्सरुप्रपात - खगनी मूठ बनाववा विगेरेनी कळा ६३, अशिक्षा - घोडानी शिक्षा ६४, हस्तीशिक्षा ६५, धनुर्वेद ६६, हिरण्यपाक, सुवर्णपाक, मणिपाक, धातुपाक ६७, बाहुयुद्ध, दंडयुद्ध, मुष्टियुद्ध, यष्टियुद्ध, युद्ध, नियुद्ध, युद्धातियुद्ध ६८, सूत्रखेड, नालिकाखेड, वर्तखेड, धर्मखेड, चर्मखेड ६९, पत्रच्छेद्य - पत्र छेदवानी कळा, कटकच्छेद्य-वृक्षांगविशेष छेदवानी कळा ७०, सजीव-निर्जीवने सजीव जेवो करीने अने सजीवने निर्जीव जेवो करीने बताववानी कळा ७१, तथा शकुनरुत - पक्षीना शब्दथी शभाशुभ जाणवानी कळा ७२ (७)। संमूच्छिम खेचर पंचेंद्रिय तिर्यंच योनिवाळानी उत्कृष्ट स्थिति चोंतेर हजार वर्षनी कही छे ( ८ ) ॥
टीकार्थ:- हवे बोंतेरमा स्थानकमां कांइक लखे छे – सुवर्णकुमारना वोंतेर लाख भवनो छे. केवी रीते १ ते कहे छे
समवाय
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