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... मूलार्थः-भरत अने ऐरवत क्षेत्रने विषे एक एक (दरेक) उत्सर्पिणीमां अने अवसर्पिणीमां चोपन चोपन उत्तम पुरुषो उप्तन्न थया हता, उत्पन्न थाय छ, अने उत्पन्न थशे. ते आ प्रमाणे--चोवीश तीर्थंकरो, बार चक्रवर्तीओ, नव बळदेवो अने नव वासुदेवो (१)। अरिहंत अरिष्टनेमि भगवान चोपन रात्रिदिवस छद्मस्थपर्याय पाळीने जिन थया, सर्वज्ञ थया अने सर्वभाव(पदार्थ)ने जोनारा थया (२)। श्रमण भगवान महावीरस्वामीए एक ज दिवसे एक ज आसने वेसीने चोपन व्याकरणोने (प्रश्नोत्तरोने) कह्या हता (३)। श्री अनंतनाथ अरिहंतने चोपन गणधरो हता (४)॥
टीकार्थः--चोपनमा स्थानकने विपे काइक लखे छे--' पाउणित्ता'--एटले पामीने (२)। 'एगणिसेजाए त्ति'-- एक आसनने ग्रहण करवावडे ( एक ज आसने बेसीने) 'वागरणाई त्ति' जे व्याकरण कराय एटले कहेवाय ते व्याकरण कहेवाय छे एटले के कोइनो प्रश्न थाय त्यारे उत्तररूपे कहेवाता पदार्थो, तेने व्याकृतवान् एटले कह्या हता. आ| वात अप्रसिद्ध छे (३)। अहीं अनंतनाथना चोपन गणधरो कह्या छे, पण आवश्यकमांहे तो पचास कह्या छे तेथी आ मतांतर जाणवू (४) ।। सूत्र--५४ ॥ हवे पंचावनमुं स्थान कहे छे--
मू०-मल्लिस्स णं अरहओ पणपन्नं वाससहस्साइं परमाउं पालइत्ता सिद्ध बुद्धे जाव ... १. आमा नव प्रतिवासुदेव भेळववाथी ६३ उत्तम ( शलाका ) पुरुषो थाय छे.