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________________ IV... समवाय ५०॥ समवायाङ्ग सूत्र॥ --चोथु अंग G ... मूलार्थ:-सात सप्तमिका नामनी भिक्षुप्रतिमाना ओगणपचास रात्रिदिवस थाय छे, ते प्रतिमा एक सो ने छन्नु भिक्षा 9 (दत्ति )वडे सूत्रमा कह्या प्रमाणे आराधेली थाय छ (१)। देवकुरु अने उत्तरकुरुना मनुष्यो ओगणपचास रात्रिदिवसे । यौवन अवस्थाने पामेला थाय छे (२)।त्रींद्रियोनी स्थिति उत्कृष्टथी ओगणपचास रात्रि दिवसनी कही छे (३)॥ टीकार्थ:-हवे ओगणपचासमा स्थानकमां लखे छे-जेमां सातमा दिवसो सात रहेला होय ते सप्तसप्तमिका एटले के सात सप्तकमां सात सात दिवसो होय, तेथी ते सप्तसप्तमिका सात दिवसर्नु सप्तक होवाथी ओगणपचास दिवसे पूर्ण थाय छे. 'पडिम त्ति'-प्रतिमा एटले अभिग्रह. 'छन्नउएणं भिक्खासएणं त्ति'-पहेला सात दिवसे हमेशा एक एक दत्तिनी वृद्धि होवाथी (१-२-३-४-५-६-७ मळीने) अठावीश दत्ति थाय छे, ए प्रमाणे साते सप्तकमां (२८-२८ होवाथी) एक सोने छन्नु दत्ति थाय छे. अथवा तो दरेक सप्तके एक एक दत्ति वधारवाथी कहेली दत्तिनुं प्रमाण आवे छे, ते आ प्रमाणे पहेला सप्तकमां हमेशा एक एक दत्ति ग्रहण करवाथी सात दत्ति थइ, बीजा सप्तकमां वेवे दत्ति लेवाथी चौद दत्ति थइ, ए प्रमाणे सातमा सप्तकमा सात सात दत्ति ग्रहण करवाथी ओगणपचास दत्ति थाय छे, ते सर्व मळीने कहेलुं प्रमाण (१९६) थाय छे. यथासूत्र एटले आगममां कह्या प्रमाणे सम्यक् प्रकारे कायावडे स्पर्श करेली थाय छे एम अध्याहार जाणवो (१) । यौवन पामेला थाय छे एटले माता-पिताना परिपालननी अपेक्षा करता नथी (२)। स्थिति एटले आयुष्य (३) ॥ सूत्र-४९॥ • हवे पचासमुं स्थान कहे छे मू०- मुणिसुव्वयस्स णं अरहओ पंचासं अजियासाहस्सीओ होत्था । १। अणंते णं अरहा ॥१४॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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