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समवाय
समवायाङ्ग
सूत्र ॥ चो) अंग ॥१३५॥
कत्तियाए वि पुषिणमाए।७।महासुक्के कप्पे चत्तालीसंविमाणावाससहस्सा पन्नत्ता बासूत्रम्-४०॥ ... मूलार्थ:-बावीशमा अरिहंत श्री अरिष्टनेमिने चाळीश हजार साध्वीओ हती (१)। मेरुपर्वतनी चूलिका ऊंचाइमां चालीश योजन छे (२) सोळमा अरिहंत श्री शांतिनाथ ऊंचाइमां चाळीश धनुष हता । (३) नागराज भृतानंद नामना नागकुमारने चाळीश लाख भवनावास ( भवनो) कह्या छे (४)। क्षुल्लिकाविमानप्रविभक्तिना त्रीजा वर्गमां चाळीश उद्देशन काळ कह्या छे (५)। फागणनी पूर्णिमाने दिवसे सूर्य चाळीश अंगुलप्रमाण पोरसीनी छाया करीने चार चरे छ (गति करे छे) (६.)। एज प्रमाणे कार्तिक पूर्णिमाने दिवसे पण जाणवू (७)। महाशुक्र नामना सातमा कल्पमां चाळीश हजार विमानावास ( विमानो) कह्या छे (८)॥
टीकार्थ:-चाळीशमुं स्थान प्रगट छे. विशेष ए के-केटलाक पुस्तकमा 'वइसाहपुषिणमासिणीए' (वैशाखनी पूर्णिमाने दिवसे) एवो पाठ जोवामां आवे छे, ते पाठ ठीक नथी. अहीं तो 'फग्गुणपुन्निमासिणीए' (फागणनी पूर्णिमाने दिवसे) एवो पाठ कहेवा योग्य छे. केम? ते कहे छे-पोसे मासे चउप्पया' (पोप मासमां चार पगलानी पोरिसी होय छे ) एवं वचन होवाथी पोष मासनी पूर्णिमाने दिवसे अडताळीश आंगळनी ते (पोरिसी) थाय छे, त्यार पछी माघना चार आंगळ अने फागणना चार आंगळ (एम आठ आंगळ ) वाद थया, तेथी फागणनी पूर्णिमाने दिवसे चाळीश आंगळनी पोरिसीनी छाया थाय छे. तथा कार्तिकनी पूर्णिमाए पण एज प्रमाणे जाणवू. केम के 'चेतासोएसु मासेसु, तिपया होइ पोरिसी' (चैत्र अने आश्विन मासमां (पूर्णिमाए )त्रण पगलानी पोरिसी होय छे) एम कां
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