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योजननो को छे (३) । ज्यारे सूर्य बहार (छेल्ला) नी पहेलाना त्रीजा मंडळने पामीने चार चरे छे (गति करे छे ) त्यारे अहीं रहेला मनुष्योने कांइक ओछा तेत्रीश हजार योजन दूरथी चक्षुना स्पर्शने शीघ्र पामे छे ( जोवामां आवे छे.) (४) ॥
आ रत्नप्रभा पृथ्वीने विषे केटलाक नारकीओनी तेत्रीश पल्योपमनी स्थिति कही छे (१) । नीचे सातमी पृथ्वीने विषे काळ, महाकाळ, शेर अने महारोर ए चार नरकावासाना नारकीओनी उत्कृष्ट स्थिति तेन्रीश सागरोपमनी कही छे (२) अने अप्रतिष्ठान नरकावासाना नारकीओनी जघन्य अने उत्कृष्ट रहितपणे ( एक सरखी रीते सर्वनी ) तेत्रीश सागरोपमनी . स्थिति कही छे (३) । केटलाक असुरकुमार देवोनी तेत्रीश पल्योपमनी स्थिति कही छे (४) । सौधर्म अने ईशान कल्पने विषे 'केटलाक देवोनी तेत्रीश पल्योपमनी स्थिति कही छे (५) । विजय, वैजयंत, जयंत अने अपराजित नामना चार विमानने विषे ( देवोनी ) उत्कृष्ट स्थिति तेत्रीश सागरोपमनी कही छे (६) । जे देवो सर्वार्थसिद्ध नामना महाविमानमां देवपणे उत्पन्न थया होय, ते देवोनी जघन्य अने उत्कृष्ट रहित ( एक सरखी रीते सर्वनी ) तेत्रीश साग रोपमनी स्थिति कही छे (७) ।
ते देवो तेत्री अर्ध मासे ( पखवाडीये) आन ले छे, प्राण ले छे एटले उच्छ्वास ले छे, निःश्वास ले छे (१) । ते देवोने त्रीश हजार वर्षे आहारनी इच्छा उत्पन्न थाय छे (२) । एवा केटलाक भवसिद्धिक (भव्य) जीवो छे के जेओ तेत्रीश भवने ग्रहण करवा वडे सिद्ध थशे, बुद्ध थशे, मुक्त थशे, परिनिर्वाण पामशे अर्थात् सर्व दुःखनो अंत करशे (३) ॥
टीकार्थः - हवे तेत्री शमं स्थानक कहे छे - तेमां ' आय ' एटले सम्यग्दर्शनादिकनी प्राप्ति, तेनी जे ' शातना ' एटले खंडन (विनाश ), ते निरुक्तने आधारे आशातना कहेवाय छे. तेमां शैक्ष एटले अल्प चारित्रपर्यायवाळो शिष्य (साधु)