SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नाम ९, रस नाम १०, स्पर्श नाम ११, देवानुपूर्वी नाम १२, अगुरुलघु नाम १३, उपघातनाम १४, पराघात नाम १५, उच्छ्वासनाम १६, प्रशस्त विहायोगति नाम १७, त्रस नाम १८, चादर नाम १९, पर्याप्त नाम २०, प्रत्येक शरीर नाम २१, स्थिर अने अस्थिर ( ए वेमांना कोइ एक नामकर्मने बांधे ) २२, शुभ अने अशुभ ( ए वेमांना कोइ एक नामकर्मने 'बांधे ) २३, ( सुभग नाम २४, सुस्वर नाम २५ ) आदेय अने अनादेय ए बेमांना कोइ एक नामकर्मने बांधे २६, यश:कीर्ति नाम २७, निर्माण नाम २८ । ए ज प्रमाणे नरकगतिने बांधतो जीव ते ज अठ्ठावीश प्रकृतिने बांधे, तेमां तफावत आ प्रमाणे छे-अप्रशस्त विहायोगति नाम १, हुंडक संस्थान नाम २, अस्थिर नाम ३, दुर्भग नाम ४, अशुभ नाम ५, दु:स्वर नाम ६, अनादेय नाम ७, अयशःकीर्ति नाम ८ ( ५ ) ॥ आ रत्नप्रभा पृथ्वीने विषे केटलाक नारकीओनी अठ्ठावीश पल्योपमनी स्थिति कही छे (१) । नीचे सातमी पृथ्वीने विषे hore नारीओनी अठ्ठावीश सागरोपमनी स्थिति कही छे ( २ ) । केटलाक असुरकुमार देवोनी अठ्ठावीश पल्योपमनी स्थिति कही छे (३) । सौधर्म अने ईशान कल्पने विषे केटलाक देवोनी अठ्ठावीश पल्योपमनी स्थिति कही छे (४) । उवरिम मनामना सातमा ग्रैवेयक देवोनी जघन्य स्थिति अठ्ठावीश सागरोपमनी कही छे (५) । जे देवो मज्झिमउवरिम नामना छठा ग्रैवेयक विमानने विषे देवपणे उत्पन्न थया होय, ते देवोनी उत्कृष्ट स्थिति अडावीश सागरोपमनी कही छे (६) ॥ १. नरक गति बांधतो होय ते जीव नरकगति अने नरकानुपूर्वी ज बांधे छे अने देवगति बांधतो होय ते देवगति अने देवानुपूर्वी ज बांधे छे; तेथी अहीं तफावतमां ते हकीकत लीधी नथी, एम टीका उपरथी जणाय छे.
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy