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समवाय २८॥
श्री अंधकारथी व्याप्त थयेला आकाशक्षेत्रने 'अभिवर्धयन् ' एटले प्रकाशनी हानिवडे वृद्धि पमाडतो (अर्थात् रात्रिने मोटी समवायाङ्ग करतो) सतो चारने चरे छे एटले आकाशमंडळमां भ्रमण करे छे. आनो भावार्थ ए छे के-अहीं स्थळ न्यायने आश्रीने पत्र।
आषाढ मासनी पूर्णिमाए चोवीश अंगुलप्रमाण पोरिसीनी छाया होय छे. पछी सात दिवसे एक अंगुलथी कांइक अधिक बोथु अंग एटली छाया वधे छे, तेथी श्रावण शुक्ल सप्तमीने दिवसे कांइक अधिक एकवीश दिवस गया एटले त्रण अंगुल छाया
वधे छे. आ प्रमाणे आषाढ पूर्णिमाना चोवीश अंगुलमा आत्रण अंगुल नांखवाथी सत्तावीश अंगुल थाय छे, परंतु निश्च॥ ९८॥
यथी कहीए तो कर्क संक्रातिथी आरंभीने काइक अधिक एवो जे एकवीशमो दिवस आवे ते दिवसे आ कहेली (चोवीश अंगुलरूप) पोरिसीनी छाया थाय छे (६)॥ सूत्र-२७॥ ___ हवे अट्ठावीशमुं स्थानक कहे छे.
.. मू०--अट्ठावीसविहे आयारपकप्पे पन्नत्ते, तं जहा-मासिआ आरोवणा १, सपंचराईमासिया a आरोवणा २, सदसराइमासिया आरोवणा ३, (पण्णरसरायमासिआ आरोवणा ४, सवीसइराए
मासिआ आरोवणा ५, सपंचवीसराइमासिआ आरोवणा ६, ) एवं चेव दोमासिआ आरोवणा, सपंचराईदोमासिआ आरोवणा ६, एवं तिमासिआ आरोवणा ६, चउमासिआ आरोवणा ६, उवघाइया आरोवणा २५, अणुवघाइया आरोवणा २६, कसिणा आरोवणा २७, अकसिणा आरो-
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