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________________ विचारपूर्वक बोल, क्रोधनो त्याग, लोभनो त्याग, भयनो त्याग, हास्यनो त्याग ५, अवग्रहनी अनुज्ञा लेवी - याचना करवी, अवग्रहनी सीमा ( हद ) नुं जाणवुं, पोते अवग्रहनुं अनुग्रहण करवुं, साधर्मिकना अवग्रहने तेनी आज्ञा लइने परिभोग करो, साधारण भात - पाणीनो परिभोग गुर्वादिकनी अनुज्ञा लइने करवो ५, स्त्री, पशु के नपुंसके अधिष्ठित शयन - आसन वर्जवा, स्त्रीकथा वर्जवी, स्त्रीनी इंद्रियो ( अवयवो ) ने जोवानुं वर्जयुं, पूर्वना रत (मैथुन ) नुं अने पूर्वनी क्रीडानुं स्मरण न कर, प्रणीत ( रसवाळा ) आहारनो त्याग करवो ५, श्रोत्रइंद्रियना रागनो त्याग, चक्षुइंद्रियना रागनो त्याग, घ्राणेंद्रियना रागनो त्याग, जिवेंद्रियना रागनो त्याग, स्पर्शेद्रियना रागनो त्याग ५, ( १ ) । श्री मल्लिनाथ अरिहंत पचीश धनुष ऊंचा हता ( २ ) । सर्वे दीर्घ वैताढ्य पर्वतो पचीरा योजन ऊंचा कह्या छे तथा पचीश गाउ पृथ्वीमां ऊंडा का छे (३) । बीजी नरकपृथ्वीने विषे पचीश लाख नरकावास कह्या छे ( ४ ) । चूलिका सहित आचारांग सूत्रना पचीश अध्ययनो कलां छे, ते आ प्रमाणे - शस्त्रपरिज्ञा १, लोकविजय २, शीतोष्णीय ३, सम्यक्त्व ४, आवंती ५, धूत ६, विमोक्ष ७, उपधानश्रुत ८, महापरिज्ञा ९, पिंडैषणा १०, शय्या ११, ईर्ष्या १२, भाषाध्ययन १३, षणा १४, पाषण १५, अवग्रह प्रतिमा १६, सप्तसप्तैकका २३, भावना २४ अने विमुक्ति २५, आ विमुक्ति अध्ययन निशीथ अध्ययन सहित पचीश जाणवुं ( ५ ) । अपर्याप्त अवस्थावाळो अने संक्लिष्ट परिणामवाळो विकलेंद्रिय मिथ्याष्ट जीव नामकर्मनी पचीश उत्तरप्रकृतिओने बांधे ते आ प्रमाणे- तिर्यग्गति नाम १, विकलेंद्रिय जाति नाम २, औदारिक शरीर नाम ३, तैजस शरीर नाम ४, कार्मण शरीर नाम ५, हुंडक संस्थान नाम ६, औदारिक शरीर अंगोपांग नाम ७,
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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