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श्री
समवायाङ्ग
सूत्र ॥
अंग
॥ ८७ ॥
नामना द्वीपने चिपे भरतक्षेत्रने विषे आ अवसर्पिणीमां त्रेवीश जिनेश्वरोने सूर्योदयने समये श्रेष्ठ केवळज्ञान अने केवळदर्शन उत्पन्न थया हता (२) । आ जंबूद्वीप नामना द्वीपने विषे ( भरतक्षेत्रने विषे ) आ अवसर्पिणीना त्रेवीश तीर्थकरो पूर्वभवमां अग्यार अंगने जाणनारा हता, ते आ प्रमाणे- अजितनाथ, संभवनाथ, अभिनंदनस्वामी, सुमतिस्वामी विगेरेने लड़ने या पार्श्वनाथस्वामी ने वर्धमानस्वामी, मात्र एक कोशल देशमां उत्पन्न थयेला ऋषभदेव अरिहंत चौद पूर्वने जाण - नार हता ( ३ ) | आ जंबूद्वीप नामना द्वीपने विषे ( भरतक्षेत्रने विषे ) आ अवसर्पिणीमां त्रेवीश तीर्थकरो पूर्वभवे मांडलिक राजाओ हता, ते आ प्रमाणे - अजितनाथ, संभवनाथ, अभिनंदन विगेरे यावत् पार्श्वनाथ अने वर्धमानस्वामी, मात्र एक कौलिक ऋषभदेव स्वामी पूर्वभवमां चक्रवर्ती हता ( ४ ) ॥
- रत्नप्रभा पृथ्वीने विषे केटलाक नारकीओनी जेवीश पल्योपमनी स्थिति कहीं छे ( १ ) नीचे सातमी नरक पृथ्वीने विषे केला नारकीओनी त्रेवीश सागरोपमनी स्थिति कही छे (२) । केटलाक असुरकुमार देवोनी देवीश पल्योपनी स्थिति कही छे (३) । सौधर्म अने ईशान देवलोकमां केटलाक देवोनी श्रेवीश पल्योपमनी स्थिति कही छे (४) । . हे हिममज्झिम नामना बीजा ग्रैवेयकना देवोनी जघन्य स्थिति त्रेवीश सागरोपमनी कही छे ( ५ ) । जे देवो हेडिम हेहिम नामना पहेला ग्रैवेयक विमानमां देवपणे उत्पन्न थया होय ते देवोनी उत्कृष्ट स्थिति त्रेवीश सागरोपमनी कही छे (६) ।
ते देवो वीश अर्धमासे ( पखवाडीए) आन ले छे, प्राण ले छे, एटले उच्छ्वास ले छे, निःश्वास ले छे ( १ ) । ते देवाने त्रेवीश हजार वर्षे आहारनी इच्छा उत्पन्न थाय छे (२) । एवा केटलाक भवसिद्धिक जीवो छे के जेओ वीश
समवाय २३ ॥
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