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________________ प्रो० परशुराम कृष्ण गोडे १. २. कनौजके सम्राट् श्रीहर्ष (सन् ६०६-६४८) ने 'नागानन्द' नामक एक नाटक रचा था। उसमें शरत्समयमें 'दीपप्रतिपदुत्सव' मनानेका उल्लेख है । उस समय इस उत्सव पर वर-वधूको नववस्त्र भेंट करनेकी प्रथा थी। आजकलभी विवाहके पश्चात् पहली दिवाली पर दामादको दावत और आभूषण मेंट करनेकी प्रथा कहीं-कहीं पर है। ३. नीलमतपुराण' की रचना काश्मीरमें सन ५०० से ८०० ई. के मध्य हुईथी। इस पुराणमें दिवाली उत्सवकी प्रमुख बातें इस प्रकार लिखी हैं।- (१) चहु ओर दीपोंका जलाना, (२) कंडील-वजादि लटकाना, (३) ग्रामणों और सम्बन्धियों सहित भोजन करना, (४) सगीत और छूतरमण, (५) स्त्रियोंकी सगतिमें रानि जागरण, (६) मूल्यमई रलाभूषण और वस्त्र धारण करना, (७) मित्रों, सम्बन्धियों, ब्राह्मणों और नौकरोंको नये वस्त्र भेंट करना । (कार्तिक अमाया दीपमाला वर्णनम् ).२ . ४. 'आदित्यपुराण' (१००० ई ) में कार्तिक कृष्ण अमावस्या को लक्ष्मी पूजन करना और दिनमें 'सुख सुप्तिका व्रत' मनाने का विधान है। रातको दीपक जलाने, ज्योनार करने और नये वनोंको मेंट करनाभी लिखा है । किन्तु आजकल 'सुखमुप्तिकान्त ' दक्षिण आश्विन अमावस्याको मनाया नाता है। ५. हिन्दू 'पद्म पुराण' में 'चैत्रप्रतिपत्' की तरह 'कार्तिक प्रतिपत् ' पर लान, दिग्यनीराजन, गोमहिन्यादि भूषण एव ब्राह्मण भोजनका विधान है। ब्रह्माको इसदिन गुख, दीप व नए वन चढाकर पूजनाभी आवश्यक है। 'भविष्यपुराण' और बाराहपुराणर्मेभी ऐसाही विधान है । 'ब्रह्मपुराण' और 'भविष्य-पुराणमें कार्तिक शु. प्रतिपदके प्रातः दो घडी दिन चढने पर नारी नीराजन और शामको मङ्गल मालिका मनाने का विधान है । 'देवी पुराण मेंभी यही उल्लेख है । 'ब्रह्मापुराण में लिखा है कि पार्वतीजीने इस दिन चूत क्रीडामें शङ्करजीको जीत लिया था। इसलिये अन्यलोकभी द्यूत क्रीडा, गीतवाद्य, बन्धुभोजन, दीपमालादि करें 1 . ६. 'वामनपुराण में इसका उल्लेख 'वीर प्रतिपदा नामसे हुआ है। ७. जैनाचार्य सोमदेवसूरिने मान्यखेट (मलखेढ) के राष्ट्रकूट-सम्राटू कृष्ण तृतीयके शासनकाल (सन. ९५९ ई.) में 'यशस्तिलकचम्पू' ग्रंथ रचा था। उसमें दीपोत्सवके सम्बन्ध निम्नलिखित वार्ताका उल्लेख किया है: (१) घरोंकी लिपाई पुताई कराकर श्वेतध्वजादिसे अलकृत । १. Ibid. २. Ibid, p. 254. 4. Journal of the Jha Institute, Allahabad, Vol. III, pt. 2, p 210 ४ Bharatiya Vidya, March 1947, pp 60-61... हिन्दू पुराणों के वर्णन बहुधा अध्यात्म रहस्यके रूपकोंमें होते हैं। क्या पार्वतीका शहरजीको द्यूतकीडामें जीतनेका अर्थ मासुरी-सहारक-पृत्ति पर हिंसक-वृत्तिकी विजय (अक्षिका) द्योतक है? --सं० ५. Ibad, P62.
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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