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________________ भ० महावीर और म० गांधी ! (श्री० कामताप्रसाद जैन) अहमदाबादने वि० स० १९१६ के वीरजयन्ती उत्सवमें स्व. म. गांधीने पधारकर जो भाषण दिया उसमें आपने कहा था कि " महावीर स्वामीका नाम इसमय यदि किसीभी सिद्धान्तके लिये पूजा जाता हो तो वह अहिंसा है | मैने अपनी शक्तिके अनुसार संसारके जुदे जुदे धर्मोका अध्ययन किया है और जो जो सिद्धान्त मुझे योग्य मालूम हुये हैं, उनका आचरणभी में करवा रहा हूँ। मैं मानता है कि प्रत्येक धर्मको उच्चता इसी बातमें है कि उस धर्ममें अहिंसाका तत्व किउने परिमाणमें है और इस तत्वको चदि किसीनभी अधिकसे अधिक विकसित किया हो, तो वे महावीर स्वामी थे!' इस प्रकार म० गाधीको दृष्टिमें भ० महावीर अहिंसाके सर्वश्रेष्ठ प्रणेता थे। अव उनकी परस्पर तुलना भला क्याकी जावे! भ० महावीर धर्मयुगके क्रान्तिकारी वैज्ञानिक महापुरुष थे और म० गाधी कल-युगके क्रान्तिमय सुधारवादी नेता ! उनकी वाणी कहता है कि भ० महापौरसे उन्होंने बहुतकुछ सीखा था। इस चुगमें भ० महावीरके अनन्य भक्त शतावधानी जैन कवि राजचन्द्रजी हुये हैं । म० गाधीबीने इन कवि राजचन्द्रजीके विषयमें एकबार अहमदाबादमें कहा था कि " मेरे जीवन पर श्रीमदाजचन्द्रभाईका ऐसा स्थायी प्रभाव पड़ा है कि मैं उसका वर्णन नहीं कर सकता। यूपके तत्त्वज्ञानियों में टाल्टॉयको पहली श्रेणीका और रस्किन को दूसरी श्रेणीका विद्वान् उनसता हूँ, पर श्रीमद्रराजचन्द्रमाईका अनुभव इन दोनोंसे बदा-बदा था!" इस प्रकार श्रीमद्राजचन्द्रजीके सम्पर्कमें लाकर म. गांधीने म. महावीरकी शिक्षाका परिचय पाया था-इस अघयनसे वह ऐसे प्रभावित हुये कि अहिंसाको उन्होंने अपने जीवनका आधार-स्तम बनाया और उसके अनुसार सत्याग्रह सग्राममें विजय पाकर भारतका स्वतत्र बनाया। निसन्देह जैन धर्माचार्योका प्रमाव उनके हृदय पर बचपनवे पडा था। उनकी माके गुरू जैन धर्मानुयाची वेचरजी स्वामी थे और उनके पिताजीके पाठभी जैनधर्माचार्य आते थे, जिनकी धर्मचर्चा वे सुना करतो थे । विलायत जाने के प्रसग म० गाधीजीने अपनी "आत्मक्या मैं लिखा है कि "माता वोली- मुझे तेरा विश्वास है। पर दूर विदेशमें कैसा होगा ? मेरी तो अकल कान नहीं करती। मैं वेचरजी सामीसे पूगी । ' वेचरजी खामी मोट बनियेसे जैन साधु हुए थे। जोशीजीकी तरह सलाहकारभी थे। उन्होंने मेरी मदद की। उन्होंने कहा कि मैं इसे तीनों बातोंकी प्रतिना लिया लगा। फिर जाने देनेमें कोई हर्ज नहीं । तदनुसार मैंने मांस, मदिरा और स्त्रीनगते दूर रहनेको प्रतिज्ञा ली । माताजीने इजाजत दे दी।" इस प्रसंगले स्पष्ट है कि महात्माजीके अहिंसक १. हैन जगत् , १ अप्रेल १९१७ से. २. आरमसिद्धि से. ३ नानकथा ( प्रथम खंड) अजमेर, पृ . ४. आमच्या (१ भाग) पृ० १६. २८
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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