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भ० महावीर-स्मृति-ग्रंथ । और बुद्धका अर्थ यहकि वह पुरुष जो सबके लिये ज्ञानी हुआ हो!' पहला ज्ञानी एकान्तमें रहता हुआ अपनी आत्मशुद्धि करके सतोष मानता है । दूसरा, लोकसमाजमें विचरता और उपदेश देते हुएमी आत्मशुद्धिका प्रयत्न करता है । महावीरको एकान्तवासी प्रत्येकबुद्धकी संशातो दी नहीं ना सकती, क्यों कि वहमी लोकसमाजमें विचरते थे । बुद्धकी तरह महावीरकेमी अनेक शिष्य ये और उनका अपना सधमी था। महावीर सघका विस्तारमी होता रहा है। मारतकी सीमाके बाहर यद्यपि उसका विस्तार अधिक नहीं हुआ, परन्तु भारतमें उसका अस्तित्व आजतक है।... अतः महावीरका स्थान प्रत्येकजुद्धसे अचा है। निस्सन्देह महावीर उन महापुरुषों में थे जो आत्मचिन्तवनपर विशेष ध्यान देते थे और उनके शिष्यगण आत्मोद्धारके लिये विशेष पुरुषार्थ करते थे। इस प्रकार प्रत्येक बुद्ध और बुद्ध-इन दोन श्रोणियोंके ऊपर महावीर थे।" वह थेमी एक तीर्थकर, जिन्होंने योग और ध्यानकी पराकाष्ठाको पहुचकर मन-वचन-कायकी सीमाओंको जीत लिया था। उन्हें मानवोंके मध्य घूम-फिर कर वैयक्तिक सम्बन्ध स्थापित करनेकी इच्छाही नहीं रही थी। वह यत्र-तत्र निर्मोही होकर विचरते थे। उनकी अमित दया निरन्तर जीवोंको अभय और सुखी बनाने में कारणभूत थी। धर्मका विश्लेषण मनोविज्ञान के आधारसे करके उन्होंने आत्मशानका उपदेश दिया था। उनके धर्मविज्ञान, प्रत्येक प्राणी स्वाधीन था उसे दूसरेका मुह ताकनेकी आवश्यकता न थी। वह स्वय पुरुषार्थ करे और सुख-समृद्धिको पा ले। बाघ समृद्धिको महावीरने हेय बताया था। इसलिये उनके शिष्य मामोद्धारके कार्यमें संलग्न रहते थे। वह अपना आत्मोपकार करते थे और लोककामी ! आत्मस्वातन्य-प्राप्तिका यह मार्ग वुद्धके मध्यमार्गसे अधिक सयममय और श्रमसाध्य था। किन्तु जो व्यक्ति उसके रहस्यको पहिचान लेता था, उसके निकट वह अति सरल और आनन्दका मार्ग था । वह इस जन्मके संयोग-वियोगके दुखोंसे भयभीत होकर वासनासक्त नहीं रहता था और भविष्य जीवनके स्वरूपको समझ कर जन्म-मरणको जीतनेके लिये पुरुषार्थ करता था। महावीरने प्राणीमात्रको बता दिया था, वह क्या है ? लोक क्या है ? लोकसे उठका सम्बन्ध क्या है। सुख-दुख उसकी आत्मभ्रान्तिके परिणाम है । इसलिये भ्रान्ति-मुक्त होना उपादेय है ! बुद्धदेवने लोक और परलोककी ओर प्यान नहीं दिया। उन्होंने ससारके दुखों और उनसे मुक्त होनेके लिये इस जीवनको सयमित बनाने पर जोर दिया। यह जीवन सुधार लिया तो भविष्यभी सुधर जायगा । बात तो ठीक थी. परतु बुद्धिको जिज्ञासाको इतनेसे सतोप नहीं होता । इसलिये महावीरने जीवन-विज्ञानका निरूपण कियामानवको इस जीवन और भावी जीवनका वैज्ञानिक बोध उन्होंने कराया। इससे मानवके मन और युद्धि दोनोंको सतोप हुआ और वह इस जीवनके साथही भावी जीवनकोमी सफल बनानेमें समर्थ
___ "मझिमनिकाय के 'सामगामतुत 'से स्पष्ट है कि जिस समय त्रुद्ध सामगाम, थे, उस समय मातृपुत्र महावीर पावाटे मुक्त हुये थे 1 महावीर-निर्वाणसे कुछ समय पश्चात् बुद्ध दिवंगत
१. बुद्ध भने महावीर ( गुज०) पृ० १८-२०.
२. “एम् समयम् भगवा सम्म विहरन्ति सामगामे, वेन खो पन समयेन निरगन्हो नातपुती पापापम् मधुना फालझनो होति। -मन्तिमनिकाय मा०१ पृ० १३.