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श्री० अयोध्याप्रसादजी जैन।
खा सकते और सरोवरसे पानी पी सकते हैं. इसके विपरीत महावीर अकेले हैं, निशस्त्र है और अपने आप खाने पीने की कोई वस्तु न लेते हैन मांगते हैं, न हथियार रखते है और न आतताइयोंसे अपनी रक्षाका उपायही करते हैं. राम विवाह कर लेते हैं महावीर विवाहतक नहीं करते !
यह सव होते हुयेभी रामकी चर्चा घरघरमें है. उनकी कथा गावगांवमें महीनों तक होती है. उनकी लीला दिखाई जाती है. फिरभी लोगोंका मन नहीं भरता, इसके विपरीत महावीरका इतना तप त्यागका जीवन होते हुयेमी उन्हें वह ख्याति नहीं. इसका कारण यही है कि उनका जीवन कोई अपनी अमर लेखनीसे लिख दे, अभी तक ऐसा कोई कविही नहीं हुआ।
वर्षमें चैत्र सुदी १३, श्रावण कृष्णा १ और दीपावलीको उनके जन्म, शासनदिवस और निर्वाणोत्सव मनाए जाते हैं, जैनपत्रोके इन अवसरों पर विशेषाक निकलते हैं, पर वही एक दो बात जो सदासे सुनते आये हैं. जहा रामकी कथा महीनों कहीं ना सकती है, वहा महावीरकी कथा रातमरमी कहनेवाला विद्वान् नजर नहीं आता, इसका कारण यही है कि जिस अमरवाणीमें उनका जीवन लिखा होना चाहिये, वह नहीं मिलता, यह कहना कि जब लिखने योग्य घठनाही न हो तब क्या लिखा जाय, कुछ ठीक दलील नहीं है. रामकी सब बातें वाल्मीकिने देखीं या सुनी थीं क्या ? क्या उन्होंने अपनी कवित्व शक्तिसे कुछ काम नहीं लिया ? और थोडी देरको यहमी मान लिया जाये कि वाल्मीकि तो उससमय उपस्थित थे, इस लिये वे सब लिख सके, पर तुलसीदास और मैथिली. शरण गुप्त तो तब उपस्थित नहीं थे, इन्होंने अपनी अलौकिक प्रतिभाके वलपर राम कथानकमें जो नवीन चमत्कार पैदा किया है वह किस आधार पर १ अतः राम और महावीरकी तुलना उनके जीवनसे न करके उनके कथासाहित्यसे की जाती है तो मैंभी निःसकोच कहूगा कि महावीर सम्बन्धी कथानक नहींके बराबर है.
। बुद्ध, ईसा, मुहम्मदकी जीवन घटनायें जुदा जुदा है, पर चितरोंने इस रगमें अंकित की है कि मुंहसे वेसास्ता दाद निकलती है, शकुन्तला क्या थी और क्या न थी, यह कौन जाने ? पर कालिदासकी शकुन्तलाको कौन भूल सकता है ? १ . साराय यह कि जिस नायकको जितनाही श्रेष्ट लेखक मिला, वह उतनाही अधिक ख्यातिको प्राप्त हुआ है. एकही डाल पर खिलनेवाले दो फूल तोडनेवालेकी बुद्धिसे एक देव पर और दूसरा कंत्र पर चढ जाता है... । ।
एकही समय और देशमें होनेवाले बुद्ध और महावीरको देखिये. बुद्धके अनुयाई ७० करोड हैं, महावीरके १२ लाख. बुद्धका जीवन दुनियाकी हजारों भाषाओंमें प्रकाशित हो रहा है, महावीरका जीवन एक भाषासेमी सम्पूर्ण नहीं है, ___ भ० महावीरके नाम पर लाखों करोडों रुपया दान करनेवाले जैन, उनका एक ऐसा जीवनचरित्र लिखवा सकें, जो आत्मविभोर करदे-जो अपने अदर सपूर्ण हो-जिसे पढकर पिपाग शान्त की जा सके, ऐसे जैन अब हैं कहीं?" इति शम् । '