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श्री अयोध्याप्रसादजी गोयलीय।।
२३. वे बोले : " आवश्यकताके अनुसार हमें दोनोंकाही अनुकरण करना चाहिये, आपके इस कथनका तात्पर्य मैं समझा नहीं।"
मैने तनिक सष्ट करते हुये कहा: "यदि हमारी परिस्थिति राम जैसी है यानी इमरो पिता किसी कारण हमें घरसे निकालना चाहते हैं तो हमें रामका अनुकरण करके पर छोडकरपिताके आदेशका पालन करना चाहिये, और यदि हमारी परिस्थिति महावीर जैसी है यानी हमारे माता पिता मोहवश हमें लोकोपयोगी कार्य करने के लिये घर नहीं त्यागने देते हैं तो हमें महाबीरका अनुकरण करके मातापिताको समझाबुझा कर उनका आदेश मास करके घर त्यागना चाहिये, धार्मिक पुरुषोंको दुष्ट प्रकृति कष्ट पहुचाते हैं, हमारी स्त्रियोंका अपहरण करते हैं, तब हमें रामका अनुकरण करके धार्मिक पुरुषों और स्त्रियों की रक्षा करनी चाहिये. और यदि धर्मके नाम पर धार्मिक कहे जानेवाले पुरुष अबलाओं, पतितों और मूक पशुओंसे दुर्व्यवहार करें तो वहा हमें महावीरका अनुकरण करके ऐसे धार्मिक रीति रिवाजोंको नष्ट करना चाहिये. मातृ-पितृ-गुरु-भक्ति, एक-पत्नी-प्रत; बन्धु-प्रेम, अत्याचार-दमनके लिये हमें महावीरका अनुकरण करना चाहिये. दोनोंकेही आदर्श, हमारे लिये आवश्यकतानुसार अनुकरणीय हैं और दोनोंही हमारे लिये आराध्य हैं."
"राम और महावीरही क्या जव जैसी परिस्थिति हो और उस समय जो मनुष्यका वास्तविक कर्तव्य हो, उसीके अनुसार अनुकरण करना चाहिये."
"युद्धके अवसर पर अथवा मड-शालाओंमें हमें 'हनूमान, बाहुबली, द्रोणाचार्य, अर्जुन, मीमका स्मरण करना चाहिये. उन्हींका अनुकरण करना योग्य है. वीर शत्रूसे मुकाबिला होनेपर रामका और कुटिल शनुसे सामना होनेपर कृष्णका अनुकरण करना चाहिये.' सत्यके लिये हरिश्चन्द्र और दानके लिये कर्ण, ब्रहाचर्य के लिये भीष्म, पावित्रत सतीत्वके लिये सीताका अनुकरण करना चाहिये. उन्हींका आदर्श सामने रखना चाहिये. हमारे जीवनके प्रत्येक श्वासमें जिस महापुरुषके अनुकरणकी आवश्यकता पड़े, इमें उसीका अनुकरण करना चाहिये. और जो परम पद प्राप्त करके
आत्मासे परमात्मा हो गये हैं, उन सभीकी आराधना करना चाहिये." " • वे सज्जन बोले : "नहीं, मेरे पूंछनेका मशा यह नहीं है. मैं पूछता हूं महावीर और राम इन दोनोमें महान् कौन है," .. मैने इसकर कहाः " इन दोनों महापुरुषों की तुलना करना ठीक नहीं, रामके बीपनमें महावीर जैसा तप, त्याग, वैराग्य और लोक कल्याणकारी भावनायें ढूंढना और महावीरके जीवनमें राम जैसा युद्ध, सैन्यसंग्रहका कौशल देखना दुधर्मे दहीका स्वाद खोजना है, । प्रायः सभी महापुरुषोंका जीवन अनी स्थिति आदिके अनुसार जुदाजुदा होता है और यही उनकी महानता है. उद्यानमें सभी एक रंगके फूल कुछ विशेष आकर्षणीयं नहीं होते. जीवनके भिन्न मिन्न पहलूपर भिन्न भिन्न महापुरुषोंके जीवनकी छाप रहती है. जो घटनायें रामके जीवनमें भाई के महावीरके जीवन में न आयें तो महावीर राम जैसा भादर्श कैसे उपस्थित कर सकते थे ? और जो