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The Urgent Necessity of Universal Love and Non-Violence.
BY SRī THOMAS H LAWRENCE, Liverpool.
श्री टॉमस लॉरेन्स सा० ब्रिटिश सेनामें एक अफसर है। जैनधर्मको शिक्षासे वह प्रभावित हुये है । इस लेख में उन्होंने विश्वशान्ति के लिये अहिंसाको अचूक औषधि बताया है । वह लिखते हैं कि तीसरा एटम युद्ध प्रारंभ हो उसके पहलेही लोक्को अहिंसा धर्मानुयायी हो जाना आबश्यक है । मानवने अभीतक -युद्धका विनाश और हाहाकार देखकर भी — पशुबलकी निरर्थकता नहीं पहचानी और अहिंसाकी उपयोगिता नहीं जानी, यह आश्चर्य है । मानव परमात्माको भूले हुये है ! यहूदी कहता है कि जो तुमको अप्रिय है उसका प्रयोग अपने पढोसी पर मत करो । अरव कहता है कि अपने साथी भाईके साथ वैसा व्यवहार मत करो जैसा वह तुम्हारे प्रति नहीं चाहता । इसपर भी फिलस्तीन में यहूदी और भरव रक्तपात में संलन है । ईसाई कहता है कि लोकमें शान्ति हो- मानवोंमें समभाव फैले । किन्तु ईमाई ईसाई आरसमें चरावर लड़ते आ रहे हैं। हिंदू - जैन-बौद्ध - पारसी - कन्फ्यूजियन आदि सभी धर्मवाले समभाव की बात कहते हैं । किन्तु उनके ही अनुयायी बच्चे-बूढों - जवान औरतों सबका वध करते हुये नहीं हिचकते । मानव भूल गया है कि द्वेषसे देयका अन्त नहीं होता। प्रेम सर्वजयी है, किन्तु नानवको उसकी शक्तिमें विश्वास नहीं । मानवको भूलनाना चाहिये कि वह भारतीय, प्रेम, चीनी, अमरीकन, रूसी, पोल, फेन्च, ग्रीक, अरव आदि है । वह अन्तर्राष्ट्रीय 'मानव' वन जावे और भाषाका भेद भुला दे । मगाधीने अपने चिमेम और अहिंसा के प्रयोगोद्वारा विशेष वफलता पाई थी। अमरीका के एटम बॉम्बसेमी अधिक सफल वद्द हुये । लोक सत्य और अहिंसा की शक्तिको पहिचानता जा रहा है और यह दिन जल्दी भानेवाला है जब उडनेवाले केवल राष्ट्रनेतागण ही रह जायेंगे । जनमत उनका साथ नहीं देगा और तब वृद्धहो ही नहीं सकेंगे ! यतएव विश्वशान्तिके लिये अहिंमाका मचार होना आवश्यक है । सब देशों में अहिंमाधर्मकी शिक्षा देनेकी प्रवध होना चाहिये । लोकका कल्याण इसीमें है । - का० प्र० ]
It is imperative that the creed of Universal Love and practice of NonViolence be accepted by the nations of the world before we stupidily hurtle into the atomic war of self-destruction
World wars have come and gone bringing only bitter grapes as the fruits of victory.
Already, atomic weapons of annihilation are being hammered out on the anvils of nations East and West and Scientists the world over are probing deeper and deeper into the diabolic plans for Bacteriological warfare.
The blood upon the fields, the entrails in the dust; the nibbled towns; the glass eyed children and broken emaciated women clinging to more broken and tattered men in clotted sadden unproud uniforms are the harvestings of
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