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________________ २५२ भ० महावीर स्मृति मंध। उसे पटरानी या महारानी अथवा राजमाता पद मिश्ता आया है। श्री पुरुषको सहायक है और पुरुष नीका सहायक है, जब दोनोंही नर नारी अपने विचारोंमें एकता प्राप्त करते हैं तभी ग्रहस्थ मार्गका सुंदर रीतिसे संचालन हो सकता है । शास्त्रों में तो:-- देवपूजा गुरूपास्ति स्वाध्याय संयमस्तपः। । दान चेति गृहस्थानां षट्कर्माणि दिने दिने । । " गइस्योंके षट्कर्म बतलाये गये हैं। उससे यह सिद्ध होताही नहीं कि ये षट्कर्म भापकही पालन करते हैं श्राविका नहीं । दान तो दम्पत्तिद्वारा प्रदत्तही महत्वपूर्ण बतलाया है। राजा श्रेयांसने सपत्नीक युगादि जिन ऋषभदेवको सर्व प्रथम इक्षुरसका आहार दान दिया था, उन्होंक द्वारा मुनियोको आहार दान देनेकी प्रणाली प्रारम हुई। उपर्युक्त उदाहरणोंका मतलब यही हुमा कि नारी जातिने अपने अधिकार हमेशा से अपनाये हैं। नारी और नर दोनोंही मानव हैं, स्त्रीत्व और पुरुषत्व दोनोंको अपने कर्मानुसार प्राप्त होता है। ___ जहाँ म. वीरके समवशरण १ लाख श्रावक थे तो ३ लाख १८ हजार श्रादिकायें थी। जिन्होंने चन्दना दासीको दासील वधनसे मुक्त कियाथा, नही चदना आर्थिकाओंमें सर्व प्रथमयी श्रेष्ठथी। सीताजी वनवासके अन्दर मर्यादा पुरुषोत्तम, श्रीरामचन्द्रजीके साथ मुनियोंको आहार देतीपी। पूजन और प्रक्षाल ये तो मस्तिमार्गके प्रथक २ अग हैं, एवं इन दोनोंसे पुण्य वध होता है जो कि ससारका कारण है, जबकि अर्थिका सबर और निर्जराका कारण बताया गया है जिससे क्रमशः मोक्षकी प्राप्ति होती है। जब स्त्री मुक्ति के कारण इन संबर और निर्जरा करनेवाले कार वो कर सक्ती है तब बह पुण्यन्धके कारण भूत प्रमुख पूजन प्रक्षाल नहीं कर सकती है यह कैसे माना जा सका है। महाप्रभु वीरके धर्मने नारी जातिके लिये सन्मान, प्रतिष्ठा, समानाधिकार आदि सब कुछ प्राप्त कराये थे उन्हें पूर्ण धार्मिक स्वतन्त्रता दी गई थी। " सतीत्वेन महत्त्वेन तेन विनयेन च। विवेकेन खियः काश्चित् भूषयन्ति धरातलम् ||"
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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