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भ० महावीर-स्मृति-प्रथ। प्रजाकी रक्षा करती रही, जो नारी मानव समाजकी मलाईके लिये अपना बलिदान करती रही, जो नारी अपने शीलरूपी आभूषण द्वारा व्यभिचारियोंके दांत खट्टे करती रही, जो नारी बरावरके अपने धार्मिक अधिकार प्राप्त करती रही, जो नारी पति सेवाके द्वारा अपने कुष्टी पतिको कामदेव बनाती रही, उसी नारी समाजके प्रति इन स्वार्थियोंका यह निन्द्य वर्तन । जहा महिलायें अपने अधिकारसे प्युत होकर नारकी जीवन बिताती हैं, वहा युवक प्राणिग्रहण करके क्षणिक मुखके लिये इनका अपमान देखते रहे, यह युवक महावीरसे न हो सका । फलस्वरूप भ० महावीर बाल ब्रह्मचारीही रहे इसलिये कि उन्हें कामभोगके विरुद्ध क्रान्ति जो करना थी।... - भगवान बीर महिला समाजके हृदयमें उस समानाधिकारकी सरिता वहाना चाहते थे जोकि उन्हें प्रकृति द्वारा प्रदत्त थी। धार्मिक ग्रंथ तो खुले शब्दोम कहते हैं:- ।.
शिशुत्व खण्यवा, यदस्तु तत्विष्टतु तदा।
गुणाः पूजास्थान, गुणिषु लिंगं न च वयः ॥ अर्थात्---बालक स्त्री चाहे जो हो, उसके गुणही पूवने योग्य होते है उसका रूप या उसकी अवस्था नहीं। मझारुप महावीर अपनी ३० वर्षको अवस्थासे लगा कर ४२ वर्षकी अवस्था तक यानी कुल १२ वर्ष तक मौनावस्थामेही साधकके ख्यमे रहे थे।
जब आप आहरार्थ कौशाम्बी नगरी आये तब एक चन्दना नामकी महिलाको जोकि अत्याचारियों द्वारा सताई गई थी, जिसका शील लूटनेके लिए दुष्टोंने अनेक प्रकारके षड्यन्त्र रचे थे। जिसके जीवनका मूल्य पूरा "दासी" शब्दोंमें था, जो जेलखानेमें पड़ी हुई, अपनी मौतकी अन्तिम पड़ियां देखनेके लिये लालायित बनी हुई थी उसी चंदनाका आपने उद्धारकर अपहत दुर्दैरित नारीको समानपद दिलाया था। दासीप्रथा का अन्त किया था।
उन्होंने बतलाया था कि पुरपाकी भाति स्त्रिया वरावरके धार्मिक अधिकार प्राप्तकर सक्ती है। जो अधिकार पुस्पोंको प्राप्त है.या ले सकते है वही अधिकार स्त्रियोंके लियेमी है। पुरुषोंकी भाति स्त्रिया श्राविका हो सती हैं या श्रावकोकी तरह व्रतपाल सती हैं। वे धार्मिक प्रयोंका अभ्ययन कर सकता है, उन्हें यह अधिकार प्राप्त है। यदि पुरुप मुनि हो सका है वो स्त्रिया : अर्पिका हो मती है। यदि पुरष तद्भव मोक्ष प्रातकर सत्ता है तो स्त्रियाभी परम्परागत मोक्ष प्राप्तकर सक्ती है।
वी पर्यायसे मुचिका निषेध इसलिये है कि स्त्री द्वारा पूर्ण अहिंसा महारतका पालन नहीं हो सता, शारीरिक संहनन (बादि की तीन सहनन) बलबान न होनेसे उन्हें मुक्त ध्यानकी प्राप्ति नहीं हो सकी, एतदर्य भी पर्यायसे उन्हें उद्भव मुक्ति प्राप्त नहीं होती यह सैद्धान्तिक नियम है। चादनाको दामी प्रथासे मुक्ति मिली, तथापि दास प्रयाके प्रति म्यूब बगावत हुई, और मग.
. मदोरा ( रायनका पानी), ५, चन्दना रयन मंजूपा, अनन्तमती मनोरमा लादि. १. ग्रा भुश (युगादि निको पुत्रिया). ५. मैना मुदती.