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भ० महावीरकी महिला समाजको देन।
म. महावीर जिन्हें कि विश्ववद्य कहा जाता है, जिनके द्वारा प्रतिपादित उपदेशोंकी आज सरसे वही आवश्यक्ता है। व उस परिस्थितिमें पैदा हुवे थे जब किससारमै धर्मका नाम अंधकारमें छिपा हुआ था, मान, मार, दम, पाखंड, स्वार्थ, ममता आदि पाप प्रतिया अपना प्रावल्म फैलाये हुई थी। मानव अपनी पापजनित मनोवृत्तियों द्वारा लोक मृदातामही आनन्द मान रहे थे। पखस्थिति और उसके समावसे बिलकुल अपरिचित आखें बंद किये हुवे अोंकी नाईही पयनष्ट हो रहे थे। उनके जीवन के प्रत्येक कार्य दिखावटी थे। तत्वज्ञान एव सचाईकी ओर उनका ध्यान नदी या । ब्राह्मण वर्णने अपनेको समाजका सर्वेसर्वा बना रखा था |
उस समयकी महिला समाजके प्रतिभी स्वार्थी पुरुषवर्गने महान् अत्याचार किये थे। उनके लिये महिलायें मद्य मासकी तरह मोगकी सामग्री बनी हुई ही ] धर्म स्थानों तकमे सतीत्वसेमी खिलवाद किया जाता था। वानप्रस्थम गये लोगोंको भी सुरा और स्त्री भोग्य वस्तुये थीं। राजा उदयन और प्रद्योतके संघर्ष युद्ध कामिनीके लिये हुवे थे।
मलेकी बाततो यह थी कि व्याही पल्लीभी लोग दूसरेको दे देते थे और उसमें पुण्य मानते यं । "द्वितीयो वरः देवरः" इस सिद्धान्त का उस समय पर्यात प्रचार 'या। यह कुत्सित भावना सब नारी समाजके प्रति प्रचलित यी । जिस नारीसे नर पैदा हुवे जिसने वीर्यकरी चाबनियाको जन्म दिया जिसका सामाजिक धार्मिक राजनैतिक क्षेत्र में पुरुषोंकी तरह समान अधिकार रहा आया हो, जो अपनी शिक्षा, दीक्षा, विद्या, कला आदिके द्वारा इतिहासमें अपना नाम अमर 'चना आई हो उसी नारी जातिका ऐसा.महान् घोर अवापत्तन पापी पंधोद्वाराही किया गया था।
ऐसीही संघर्षमयी परिस्थितिम आनसे ठीक २५४६ वर्ष पूर्व भ० महावीरका जन्म हुभा या । इसी लिये कि धर्मका वास्तविक स्वरूप बत्रलाकर लोर्कको सन्मार्गपर लगाया जाये | दुनियांबासको वह विवेक मास कराया जाये जिसके द्वारा ये अधकार और प्रकाशको पहिचान सके उस हुई भूल मुलासे निकाल कर उन्हें समीचीन मार्गपर लगाया जा सके।
जब भगवान धीरने तत्कालीन नारी परिस्थितिका अनुभव किया तो उनका हृदय करणारस से पिघळ 'उठा । जो नारी अपने सतीत्व' द्वारा दुनियावालोंका माथा अपने चरणों में झुकाती रही, जो नारी अपने उत्कृष्ट चारित्र द्वारा इन्द्रोंकोमी चकित करती रही, जो नारी राज्य संचालन द्वारा
१. सोता. २. सुलोचना, ३. सिंहिकाः
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