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भ० महावीर स्मृति-प्रथ
इसी स्थलसे प्राप्त एक दूसरी महत्त्वपूर्ण जिनकी सडी मूर्ति (चि. स. ३) प्राप्त हुई है। जिन सिंहासनके उपर कायोत्सर्ग मुद्रामें खड़े हैं। सिंहासनकी दायीं ओर एक पुरुष दो धडौं पर स्थित आसन पर बैठा है । इसके ऊपर गोदमें बालकको लिए अग्धिका चित्रित है। देवीके कर फिर दो जिन एक दूसरेके ऊपर उभाड कर बनाए गए हैं। खेद है कि इस मूर्तिका बायां भाग खंडित हो गया है। जिनके पैरोंके निकट एक रक्षक तथा एक २ उपासक बैठे है। पैरोक नीचे पर्दे पर कोई पशु जिसका पिछला भाग मात्र नष्ट होने से बच गया है, दीख पडता है। सिरके अपर ३ परतोंकी छत्री है, और कलशके ऊपर चौडे पर किए, एक व्यक्ति ढोल बना रहा है। छन्त्रीके दोनों ओर गधर्व और हाथी पर बैठे व्या हायमें घट लिए व्यक्ति चित्रित किए गए हैं।
ऋषभनाथकी केवल एक मूर्ति संग्रहालयमें है। तीर्थकर ध्यान मुद्रामें एक सिंहासन पर के हैं। वक्ष, पैरके तलवों तथा हायों पर कमल अंकित है। दायीं तथा वायीं ओर चवर लिए एक २ यक्ष खडा है । इनके सिरके अपर एक २ जिनभी ध्यान मुद्रा बैठे चित्रित किए गए है। पैरोक नीचे जो पर्दा है, उसके निकटही तीर्थंकरका चिन्ह पभ अकित है। नीचे पीठिझाके एक कोने पर गोमेघ यक्ष तथा दूसरी और चक्रेश्वरी स्थापित हैं। सिरके पीछे प्रभामडल तथा अपर एक तीन परतकी छत्री है। छतरीके सिरे पर, एक व्यक्ति पैर पीछे किए, ढोलक बजा रहा है। प्रमामडलक दोनों ओर हायी बने हैं।
, भ्यान मुद्राकी एक दर्शनीय मृत्ति खजुराहोसे प्राप्त हुई है । आसन दो सिंहॉकी पीठ पर स्थित है। तीर्थकर पलथी मार कर पद्मासनमें बैठे हैं, दोनों बगलमें एक २ जिन खडे हैं। इनके ऊपर फिर गधर्व चित्रित हैं। सिरके पीछे प्रभामडल है जिसके मध्यमें छत्रीका उडा स्थित है। मूर्तिक ऊपरी भागमें कुछ तीर्थंकरोंकी मूर्तिया बताई गई है। पैरोंके नीचे झुलते पर्दे पर एक श्रृंगी या हिरन सदृश पशु अक्ति है । यह बतलाना कठिन है कि यह मूर्ति किस तीर्थकाकी है : हिरन दो शातिनाथ का लांछन है, परतु अब तक मास मूर्तियोंमें हिरन आसनके नीचे सिंहोंके साथ चित्रित रहते है । ___जसोसे प्राप्त एक अन्य ध्यान मुद्रामें अकित भारी मूर्ति (चित्र स, ४) उल्लेखनीय है। इसमें तीर्थंकर पद्मासनमें बैठे हैं। सिंहासन पर कमल चित्रित है तथा वह दो सिंहकी पीठ पर स्थित हैं। दो चवरधारी यक्ष दायीं बायीं ओर खडे है। इनके ऊपर फिर दो २ जिन है। सिरके पाछ अंडाकृति प्रभामंडल है और इसके दोनों ओर माला लिए तीन गंधर्व है. पीठिकाकी दायर्या आर कोने पर गोमुख त्या वार्थी ओर दो देविया अकित है। इस मूर्तिमें दो विशेष बातें ष्टिगोचर होता है। एक तो इसमें तीर्थंकर विशाल जटा पहिने हैं। इस प्रकारकी जटाएं राजगिर तथा कुछ अन्य स्थानोंकी मूर्तियोममी दीख पडती है। दूसरी उल्लेखनीय वात, चवरधारी रक्षकोंकी टोपिया है । इस टोपिर्योका रूप वैदेशीयसा लाता है। मथुरासे प्राप्त कुछ मृत्तियोंमभी ऐसे तब दीख पडते है। कोईभी लक्षण प्रत्यक्ष न होने से इस मूर्तिका रूप बतलाना कठिन है। (जटाधारी भर्तिया प्रायः प्रथम तीर्थकरकी मिलती हैं | समव है, यह मूर्तिमी ऋषभदेवकी हो | --का प्र०)
एक दुसरी मति, जिसमें कायोत्सर्ग मुद्रामें जिन खडे हैं,भी महत्वकी है। पैरोंके निकट बदर