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भ० महावीर-स्मृति-ग्रंथ। सूट चोरी कशील और मय पानसे दूर रहना चाहिए। एक सम्यबाट सायकोही जानता है। साधुको सब धनों और द्वेषसे बिल्कुल मिलग रहना चाहिए। ये ही ससारसे पार होते हैं । पीडा फारस कर्म अर्थात दड तीन प्रकार के होते है। मनदंड, वचन दंड, काय । ऐश्वर्य, रसना और पासनाके मदोनमत्त कार्यको गारव कहते हैं। मोहजनित कार्य माया निदान और मिथ्या दर्शन हैं। पांच समितियों और पांच गुप्तियों आत्म संयम सधता है। स भयो गम्यक द्रष्टि नहीं दरता है । उसे जाति, फुल, विद्या, ऐश्वर्य आदिका घमंड नहीं होता है। इस तरह सम्यक ज्ञानको उपार्जन कर रागद्वेष जीतनेसे निर्वाणका परम सुख मिलता है। कर्मके मभावसे जीपमें जो अवस्था विशेष कषायाधीन उत्पन्न होती है उसे लेश्या कहते हैं। लेश्याएँ, कृष्ण, नील, कापोत, पात, पर,
और शुक्ल इस तरह छै प्रकारकी हैं। साधु चरित्रमी कई प्रकारका है । वह द्रटतासे पाला जाता है। साधु न स्त्री-प्रसग करता है, न बुरेकी संगति रहता है । यह पुन्यपापके सटॉमें नहीं पड़ता। वह न तो साधुपनेका घमंड करता है और न उसे धन कमानेका साधन बनाता है। साधु, क्रोध, मान, माया, और लोभसे परे रहता है। वह शान्त और सुखी होता है । वह हिंसा और पाच महापापोंसे दूर रहना है।
जैनधर्म नास्तिकवाद नहीं है । वह एक विज्ञान जनित दर्शन है। पंचमतोका पालन करके सुख पाया जा सकता है। जैन धर्मके अपने निराले लक्षण हैं ! और इतिहासकी दृष्टि से उसका स्थान वैदिक धर्म और बौद्ध धर्मके मध्यमें है । वेदान्त और सायके विपरीत वह जीपको एक सक्रिय तत्व मानता है । जैन कर्म सिद्धान्त पोद्गलिक हैं जब कि बौद्धॉम वह मानसिक चारित्र नियमही है। जैन धर्म जीवके आवागमनसे सम्रार परिभ्रमण मानता है। बौद्ध इसे नहीं मानते । जैनकी तरह योग सिद्धान्तमी जीव द्रव्यको अपरिवर्तन शील मानता है। साख्यकी तरह जैन जीव पुद्गलके द्वैत चादको मानता है । वह वैशेषिक दर्शनके निकट है । जैन दृष्टीसे सुखकर मार्ग त्याग, सयम, और तपस्याम गर्भित हैं। 'सं०]
The Ksatriyas of the Jäätra clan gave India one of its greatest religious reformers, Mahāvīra, who was the last Tirthankora of the Jainas. On renoudc. ing the world be adopted the life of an ascetic of the Nirgrantha order, of which he soon became a reformer and chief himself.' It was he who brought the Jñātri Ksatriyas into intimate touch with the neighbouring communities of Eastern India and developed a religion which is still professed by millions of Indiang
Jainism is older than Buddhism. In practice it aims at the goal of libera. tion from the transmigration of the soul All substances are broadly divided into lifeless things and souls of lives (jiwa) Monastic discipline is severe in Jannism and is not confined to boduly restraints, chastity, abstinence from alcohol, Besh, honey and roots, but includes mental discipline, purity of thought, contemplation, confession and repentance
The principle of alumsā of non-harming is the first principle of higher life in Jainism. Its visible effect was sought to be shown bow even such
1 Kasagadasio, II, P6