SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री नाथूलाल जैन। मंत्र साधन और हवन के विषयमें यह अवश्य है कि शहों और अचेतन वस्तुओंमें कुछ स्वाभाविक शक्ति हैं कि उन्हें नियमों के माफिक ठीक २ मिलाया जाय और विधिपूर्वक प्रयोग किया जाप तो वे अपना प्राव करते हैं। 'मणिमाला प्रथ' के अनुसार किस रत्नको किस कब धारण करनेसे क्या लाभ या हानि होती हे यह प्रकट है । चिंतामणिरत्न, कल्पवृक्ष, कामधेनु आदिसे इसे सहज ही जाना जा सकता है। रजस्वला स्त्री को राष्ट और शह मानसे पापड क्यों खराब हो जाते हे! सी लिए मांगलिक कार्योंमें मेंहदी, अक्षत, सरसों, हल्दी, सुपारी आदिका उपयोग किया जाता है। इस कथनफो आयुर्वेदशास्त्रका निपटुभी प्रमाणित करता है । हवन ( यश ) में जो वस्तुएँ सग्रह की जाती हैं उनमें हवनद्वन्य एव समिधाके प्रयोगसे शरीरके बड़े २ रोग दूर हो जाते हैं तथा घर, ग्राम, नगर आदिको खराविया नष्ट हो जाती है । 'कल्याण में कुछ वर्ष पूर्व एक इस विषयका लेसभी निकला था। उक्त विवेचनमें मुख्य बात यही है कि उन सबका मन और आत्मापर प्रभाव पडना चाहिये । प्राणियोंका आत्मशांतिही प्रमुख ध्येय होना चाहिये और उसमे जो साधक हो उन्हें विवेकपूर्वक ग्रहण करना चाहिए । अपने सम्यक्त्व और चारित्रमें हानि करनेवाले क्रियाकारको सर्वथा परित्याग कर टेना उचित है। "जैनधर्मके चारित्र नियमोंकी पवित्रता अक्षुण्ण है और वे इस उच्च स्तरके हैं कि प्रत्येक व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नतिके लिये उनको निस्सकोच ग्रहण कर सकता है। दुखी जगतको सुख. शान्ति देने के लिये जैन शिक्षा पर्याप्त है। जैनधर्मनेही पहले-पहल अहिंसाका उपदेश दिया, जिसका मनुफरण अन्य धर्मोमें किया गया।" - लई रेनाउ पी-एच. डी., सोबोर्न विश्वविद्यालय, पेरी (फास) २१, सर्व एव हि जैनानां प्रमाण लौकिकोविधिः । यत्रसम्यक्त्वहानिर्न यत्र न मतदूषणम् ॥ (यशस्तिलकपू)
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy