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श्री नंदलाल जैन।
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lity) मी लोग स्वीकार करते हैं। आइस्टाइनका सिद्धान्त "लोकाकाशास्य यावन्तः प्रदेशाः तावन्ता कालाणवो निष्क्रियाः एकैकाकाश प्रदेशे एकैकवृत्त्या लोकव्याप्य स्थिता" को पूर्णरूपसे मानता है । यही एडिंग्टनके इस कथनसे नात होता है...
You may be aware that it is revealed to us in Eunstide's theory that space and time are mixed in rather or strange way... both space time vanish away into nothing if there be no matter. We can't conceive of them without matter. It 18 matter in which originate space and time and our universe of preception."
जैन धर्मममी अलोकाकाशमै पदार्थोके अभावसे कालाणुका अभाव है, जो इस मतकी पुष्टि परता है । “अकायत्व" मी एडिंग्टन स्वीकार करता है।
I shall use the phrase time's arrow to express this one way property of time which has no analogue in space.
काल द्रव्यकी अमततामी माइनस्टाइनकी Ceylinder theory के आधारपर ऐन्टिन मानता है।
The world is closed in space dimensions, but it is open at both ends to time dimensions.
कालाणु तो वर्तमान विज्ञान के भौतिक समयके world-wide instants ही समझने चाहिये।
कालके कार्यकलापोको विशान मानवाही है, यह स्पष्ट है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि जैनधर्म जिन कारणोंसे कालकी सत्ता मानता है, वे ही कारण, तया वे ही कार्य जो हमारे आचायोंने कालके यताये हैं, आजका विज्ञानभी स्वीकार करता है। पर जैसा कि शुरुमही कहा कि वह इसे स्वतंत्र द्रव्य नहीं मानता ।
[६] उपसंहार उपयुक्त विवेचनके आधारसर जैनमतके घट् द्रव्यों [ Substances or realitres ]को हम इन वैज्ञानिक नामोंसे ग्रहण कर सकते हैं। पुद्गल --- पदार्थ और शक्ति
Matter and Energy धर्म --- गतिमाध्यम
Esher [ of Space) अधर्म - स्थिति माध्यम
Field ( of Gravitation) and electromagbatismo
Space आकाश
Time
.. मामा
-मीर-
Soul
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