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________________ श्री० नंदलाल जैन है और उत्पाद-व्ययत्व सूचकपद " समय " [वर्तनापरि....सोऽनत समयः | म० ०] कालद्रन्य, इस प्रकार, दो प्रकारका है । (१) निधय (२) व्यवहार ! असख्य अविभागी कालाणु जो लोका. काशके प्रत्येक प्रदेशमें व्याप्त हैं, निश्चय काल हैं। और "समय" व्यवहार काल हैं। उन कालाणुओंमें परस्पर बधकी शक्ति नहीं हैं, जिससे मिलकर वे "क" बना सकें, जैसे पुद्गल । वे " श्ययाणरासीसिव " प्रत्येक आकाश प्रदेशमें स्थित है। ये कालाणु अदृश्य, अमूर्त एव तथा (निष्क्रिय ) हैं। कालमें परस्पर वशक्तिमा अभाव इसे " अस्तिकायत्व "से वचित करता है। कालमें अस्तित्व तो है [ existence सत्ता पर कायत्त्व [विस्तरण शक्ति, मिलन शाक्त, extention ] नहीं। दो प्रकारके समयविशिष्टवृत्तिपंचयामदूर्वपचयः प्रदेशप्रथयोहि तिर्यक् प्रचयः ] विस्तारविशेष सब इत्योमें पाये जाते हैं, पर कालमें प्रदेशके अभावसे मात्र अर्ध्व प्रचयही पाया जाता है । व्यवहार कालका "समय" परिणाम, क्रिया, परत्व, अपरत्वके आधार पर लिया जाता है । यह अपने अस्तित्वके [ determimation of its measure ] लिये निश्चय कालाधीन होनेसे परायत है । इसीका खुलासा आचार्योने यो किया है : “समओ णिमिसो कट्टा, कलायणाली तयो दिवारत्ती . मासो दु अयण संवच्छरोचि कालो, तदायत्तो ।। - एव विधो हि व्यवहारकालः केवल कालपर्याय मायवे नावधारयितुमशक्यत्वात् परायत्त इत्युपमीयते ॥ [पचास्तिकाय] व्यवहार और निश्चय कालमे यह विशेषता है कि प्रथम तो सादि और सात है, जबकि द्वितीय अनत होता है। निश्चय काल प्रौव्यत्व [ वर्तना, Continuity ] का बोधक है। __ प्रतिद्रव्य पर्यायमन्तवीतेक समया सत्तानुसूतिर्वर्तना ॥ [रा० पा०] . कालद्रव्यके कार्योंके विषयमें “वर्तना परिणाम क्रिया परवापरत्वे च कालस्य " सूत्र पूर्णरूपसे निर्देश करता है । यह वस्तुओं के अस्तित्वको कायम रखनेमें, परिणमन में, परिवर्तनमें, परिवर्धनम, क्रियामें, समयकी अपेक्षा छोटे बड़े होनेमें [जैसे बाल-वृद्ध इत्यादि सहायक है। इस सूत्रके द्वारा निश्चय और व्यवहार दौनोंका कार्य बताया गया है। द्रग्यसमहकी "दपपरिवहरूवो " वाली पूरी गाथा इसी सूत्रका भाव है। कालद्रव्य स्वयभी परिवर्तित एव परिवर्धित होता है, जैसे उन्सर्पिणी-अवसर्पिणी [ उन्नतिशील और अवनतिशील ]! इसके परिवर्तनमेंभी स्वय कालनिषय ] कारण है। यदि कालके परिवर्तनमे कोई दूसरा कारण हो, तो अनवस्था अव्यवस्था हो जावेगी । अतः काल स्वतंत्र द्रव्य है और परिवर्तनमें सहायक होना उसका कार्य है। सबसे छोटा कालका प्रमाण "समय" है। उसकी परिभाषा यह है वह समय जो एक परमाणु मा गलाणु अपने पासके दूसरे [ Consecutive ] परमाणुने पाठ तक पहुचोमें लेता है,
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
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