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श्री० नंदलाल जैन |
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छहों से कालको छोटकर बाकी पांच अस्तिकाय हैं जिनमें सत्ता एवं विस्तार [ Existence and Extension ] दोनों पाये जाते हैं। काल द्रव्यमें विस्तार [ नाणोः ] नहीं पाया जाता है।
अ- द्रव्यलक्षण
जैनमवमें ट्रम्यसे अर्थ उन मूलभूत वस्तुओंसे है, जिनमें उत्पादव्यय एवं प्रौन्य साथ-साथ पाये जानें एवं जिनके बिना जगत्फी स्थितिमें स्थिरता न हो । एक चीज में उत्पत्ति एव विनाशके साथ मौन्पल कैसे रह सकता है ! यह पूछा जा सकता है। शास्त्रकारोंने " अर्पितानर्पितसिद्धे " [ विविध दृष्टियॉकी अपेक्षासे ] के द्वारा इस प्रश्नका उत्तर दिया है। कटक-कुडलका दृष्टान्त इस विषय में सर्वगढ़ हूँ। द्रन्यका यह लक्षण उपर्युक्त छहाँ द्रव्योंमें पाया जाता है। ये सब द्रव्य नित्य [ प्रौढ ] हैं, मौलिक रूपमें अवस्थित [ अपरिवर्तित ] है । अमूर्त द्रव्योंमें मूर्त द्रव्यकी उपपत्तिया नहीं पायी जाती है।
द्रव्यका उपर्युक्त लक्षण आधुनिक विज्ञानके आधारपर सिद्ध है । विज्ञानके शक्ति- स्थिति [Conservation of Energy], वस्तु-अविनाशित्व [Law of Indestructibility of matter] तथा शक्ति रूपान्तर [Transformation of Energy ] आदि सिद्धान्त यह स्पष्ट बतलाते हैं कि नाशवान पदार्थमैमी प्रोव्यत्व [ Permanance ] रहता है। डेमोक्राइटस का यह अभिमतही इस विषयमें काफी है :---
" Nothing can never become something, Something can never become anything."
व मृर्त द्रव्य - पुल.
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पूरण गलनान्वर्य सशत्वाला
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जो मेद [ द्वितय निमित्त वशाद्विक्षरण, division] संघात [पृथग्भूतानामेकत्वापत्ति union ] अथवा उमयके कारण एक दूसरेके साथ योग या मिश्रण [ पूरण ] बनावें या विघटन [गलन ] पैदा करें, वे (पदार्थ) पुद्गल कहलाते हैं । पुद्गल मूर्तिक है. इसकी पहिचान रूप, रस, गंध एव स्पर्शसे होती है। प्रत्येक पदार्थमें, जो पुद्गल कहलाता है, ये चारों एक साथ पाये जाते हैं। रूपादिसे हम पदार्थोके गुणों [Properties ] का परिचय प्राप्त करते हैं । जैसे स्पर्शसे भार, कडापन, गर्मी, इत्यादि, रूपसे कृष्णनील इत्यादि रूप । पचरूप [' कृष्ण, नील, पीत, लाल, श्वेत], पंचरस [ खट्टा, मीठा, चर्परा, कसायला, कडवा ]. दोगध [ सुगंध, दुर्गंध ] एवं आठ स्प [ मृवुकठिनगुरू लघुशीतोष्णस्निग्वक्षस्पर्शयभेदाः ], इस प्रकार पुलके २० गुण हैं । ये मूल गुणभी प्रत्येक संख्यात, व्यसख्यात एव अनत होते हैं । प्रत्येक पदार्थमें, किसी न किसी प्रकारका रूप रस गघ स्पर्श [ या भिश्रणभी ] पाया जाता है । जगत्के समस्त हृदय पदार्थ पुद्गलही तो हैं [ जैसे पृथ्वी, जल, वायु आदि) 1 शरीर, वचन, मन, माण एवं श्वासोच्छवास पुगळके कार्य है । तथा जीव को सुख, दुःख, जीवन एव मरणका अनुभव पहल [ कर्म ]के कारण ही होता है। ये पुल द्रव्य है, क्यों कि इनमें " उत्पाद व्यय धौन्य " पाया जाता है । कटक कुडलके दृष्टान्तका उल्लेख हो