SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विमलताको सम्हालते हैं वे ही सच्चे विजयवान और सामर्थ्यके सच्चे दृष्टान्त हैं। विकारहेतौ सति विक्रियन्त ज्येषां न चेतांसि त एव धीराः॥ प्रमु वहांसे विहार करते२ एक दफा वैशालीमें आये। वहां एक जिनदत्त नामक दयालु और सद्गुणी श्रावक रहता था वह गरीब था, उसकी लक्ष्मी जीर्ण हो चुकी थी अतएव लोग इसको जीर्ण श्रेष्ठी कहते थे। उसको प्रभुके आगमनकी खबर हुई अतएव वह उसी उपवनमें गया जहां कि प्रमुका वास था। वहां जाकर उसने अत्यन्त भक्तिसे द्रवित हदयसे प्रमुकी स्तुति की। उसकी भावना यह थी कि एक दफा प्रभु उसके यहांसे आहार ग्रहण करे और उसकी इच्छाको पूर्ण करे । उसने इसी उद्देश्यसे अपने यहां प्रासुक और अपनी सम्पत्ति अनुसार उत्तम भोजन तैयार रखे। प्रमु इस समय दीक्षा लेनेके पश्चात् विशाला नगरीमें अपने ग्यारहवें चतुर्थमासको निर्गमन करते थे और इस चतुर्थमासमें उन्होंने चार मासके उपवासका व्रत ग्रहण किया था। व्रतकी सीमा उसी दिन पूर्ण होनेवाली थी। जिनदत्त शेठ उत्तम मोननकी सामग्रीको तैयार करके बैठा था और अत्यन्त औत्सुक्यभावसे प्रमुके आगमनकी राह देख रहा था। प्रमु आज मेरे यहासे भोजन ग्रहण करके मुझे कृतार्थ करेंगे आदि गहरे मनोभावोंसे वह विचार करता था । परन्तु इसके दुर्दैवसे अथवा और किसी कारणवशात् प्रभु उसके यहाँ नहीं गये। इस समय उस शहरमें एक दूसरा नगरसेठ था जो बड़ा धनिक था । द्रव्यके अभिमानसे उसकी मति क्षुद और शकुचित हो चुकी थी। उसने निष्कंचन और
SR No.010528
Book TitleMahavira Jivan Vistar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi
PublisherHindi Vijay Granthmala Sirohi
Publication Year1918
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy