SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [३२] मृत्यु अपनी २ कृति द्वारा ही उपार्जित होती है इस अप्रतिहत कर्मके नियमसे आत्माका रक्षण करनेको कोई भी समर्थ नहीं है। • संगमके निमित्त द्वारा प्रभु अपने उपस्थित कटका वास्तविक कारण जानते थे अतएव उन्होंने संगमपर क्रोध नहीं किया। वह वेचारा कर्मके महा नियमका हथियार था। कटके कारणोंको प्रवृत्तमान करनेवाले वे खुद थे। इस परसे सावित होता है कि क्रोधका करनेवाला अपना आत्मा ही होना चाहिये । पहिले (पूर्व भवमें ) खुदमें खुदके ही गतिमें रखे हुए कारण फलल्प होनेमें संगम तो मात्र साधन ही था और इससे वह प्रकृतिका हेतु सिद्ध करनेमें मददगार था। हम प्रमुकी स्तुति करते हैं वह इसलिये कि उपरोक्त नियमोंको लक्षमें रखकर एक प्राकृत मनुष्य संहश संगमपर वे कोपायमान नहीं हुए थे और अन्याकुलतामें गतिमान हुए। कारणोंको अपने आत्माके भोग द्वारा उनको क्षय करनेमे समर्थ हुए। इस अवसर पर एक सामान्य मनुष्य क्या करता ? और प्रमुने क्या क्या किया ? इसकी जब हम तुलना करते हैं तब प्रमुकी परम अव्यग्र और अनाकूल चित्तकी स्थिति प्रति हृदयका विशुद्ध भक्तिभाव स्फुरायमान हो जाता है वनने योग्य है इसलिये ही बना है। यह इतना अधिक प्रसिद्ध है कि चाहे कितना ही अज्ञान मनुष्य भी इससे अवश्य परिचित होगा और यह बात उसके जाननेमें अवश्य होगी। परन्तु इस प्रकार बहुत ही थोड़े वीर आत्मा इस नियमके ज्ञानको सफल कर सकते हैं ? धन्य है महावीर प्रमुको जिन्होंने इन विकट प्रसंगोपर भी धैर्यका त्याग नहीं किया और संगमकी ओर अखीरतक सम
SR No.010528
Book TitleMahavira Jivan Vistar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi
PublisherHindi Vijay Granthmala Sirohi
Publication Year1918
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy