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________________ [evj दृश्य है । उन्होंने न तो संख्याम और न धर्मका विस्तारं माना । क्षणिक बादलों के बरोबर एक केवल धम्की गहराइ मानी लोगोंके हृदय प्रदेशपर सत्यका पट चिठानेकी ओर ही प्रभुका लक्ष था । गोशाला के नाइ संख्या दढानेकी ओर उनका लक्ष नहीं था । प्रनु परिणामदर्शी थे, संख्याको एकत्रित करनेवाला मनुष्य जब चला जाता है तब धुएंके गोठेके बादलोंकी नाइ चारो ओर बिखर जाता है और उसके पीछे कुछ भी चिन्ह अवशेष नहीं रहता है । संख्याका बल इकट्टा करना और लोगोंके हृदयपर कल्याणकी भावना अंकित करना यह बिलकुल भिन्न २ कार्य है । पूर्वका कार्य फतेमंदी से करनेके लिये व्यवस्थापक शक्ति (organizing power) आदि लौकिक सामथ्योकी अपेक्षा रहती है तब पीछला कार्य करनेके लिये जम क़ल्याणपर विशुद्ध और कुछ अलौकिक आशय के प्रभावकी आवश्यक्ता है । प्रभुने पूर्व हेतुओंको गौणंतामें रखकर मात्र मनुष्य के वास्तविक और सचे हित की और विशेष लक्ष रखा था और जितना उनसे बन पढा उन्होने अपने अनुभूत सुखदाई सिद्धान्तों को जन संमाजके हृदयमें गहराइके साथ अङ्कित करनेका उद्योग किया था । आम हिन्दुके चारो कोनोमें संख्याके बलमें श्रद्धा रखनेवाले गोशालेका अनुयाई हूँढ़े नहीं मिलता और अब उसके सिद्धान्त सम्बन्धी कुछ भी चिन्ह अवशेष नहीं बचा है तब मात्र जन हितकी चिन्ता करनेवाले प्रभुके अनुयायी लोगों की संख्या कमसे कम पदहरा * यह खारवेलकें भ्रमयमै भारतका राष्ट्रीय धर्म था यह इंतिहाससे सिद्ध हो चुका है और अनेक राजाओंके कालमें यह राष्ट्रीय
SR No.010528
Book TitleMahavira Jivan Vistar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi
PublisherHindi Vijay Granthmala Sirohi
Publication Year1918
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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