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________________ [ ४१ ] अत्यन्त चाहने योग्य स्थिति है कि सारी पृथ्वीपरसे सकल युद्धका नमाना नष्ट हो जाय और सर्वत्र शान्त्रिका • महाराज्य' विस्तारित हो जाय तो इससे संसारका अधिक उपकार हो सकता है। इतना ही नहीं परन्तु मर्मभेदक वाणीके शुद्ध बंद होकर आन्तरिक शान्तिको क्षुब्ध करनेवाले निमित्तोंके साधन इकट्ठे हो जाय तो अधिक अच्छा है। दोनोंसे होनेवाली हानी और उनके परिणाम एकसे ही दुःखद और अनिष्ट हैं । ऐसा होनेपर आश्चय तो यह है कि स्थूल द्धको त्रासदायक गिनकर उसको विकारनेवाले विद्वान् वाणीरूपी युद्धमें उत्साहसे जुड जाते हैं और खुदको जो निश्चय अथवा सिद्धान्त सच्चा प्रतित हो और उसके सिवाय तमाम निश्चय मौर सिद्धान्त पर अपनी पंडिताइको ऊपर चढ़ाकर तथा जोशमें आकर अपने वाणीके शस्त्र सहित जनुनीकी नाइ टूट पडते हैं। खुदको जो बात सच्ची मालूम हो उसे प्रतिपादन कर देना अच्छा है सिवाय इसके हमे जिन सिद्धान्तों में कभी अच्छी बाते मास्यमान होती हैं तो उनको न्यायानुसार योग्य वाणीमें दर्शाकर वे बैठे रहे तो पूरेपूरा दुनियाका हित ही करते हैं । परन्तु इसके साथ वे हजारो मनुष्योंके हृदयको अकारण बोलकर छिन्नभिन्न करके फेंकनेके कर्तव्यको भी एक ईश्वरीय फर्ज ही मानते हैं और सबसे अधिक आश्चर्यकी बात तो यह है कि जब मनुष्य के प्राणको अकारण हरनेवाला किसी राज्यका इतिहास निंद्य लिखा जाता है, तब पूर्वोक्त कथित. विद्वान महा पुरुषके नाइ अपवा दुनियामें सत्यका स्थापन करके. जानेवालेके नाइ पूजा जाता है।.
SR No.010528
Book TitleMahavira Jivan Vistar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi
PublisherHindi Vijay Granthmala Sirohi
Publication Year1918
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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