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आत्माको क्षोभ उत्पन्न करते समय अथवा इसके पश्चात् उसको बिल कुल भान नहीं रहता है। आखिरमें उस पर क्षोभजनित ठोकरोंका ही उत्पतन ( Rebound ) होता है तब उसकी आंखे खुलती हैं। परन्तु उस समयका पश्चाताप व्यर्थ है । वही पश्चाताप यदि कर्मकी सत्तागत अवस्थामें हुआ होता अर्थात् जिस समय प्रकृति क्षोभको शमाती थी उस समय हुआ होता तो उसका कुछ परिणाम भी निकलता। परन्तु जव पाप फूट जाता है अर्थात् जव प्रकृति अपना वैर लेना शुरू कर देती है उस समय यह विलकुल व्यर्थ है । इतना नहीं परन्तु इससे उलटा क्षोभ उत्पन्न होता है।
सुदृष्ठदेवने अपनी दिव्य शक्तिके प्रभावसे भयङ्कर संवर्तक वायु (cyclone) पैदा किया और उसके द्वारा नावको डुबाने लगा। भागीरथीका अगाध जल चारो ओर उछलने लगा और नायके वचनेकी कोई आशा नहीं रही। चड़भी टूट गये और उसमें वैठनेवाले सर्व मनुप्योंने प्राणकेवचनेकीआशा छोड़ दी। जिस क्षणमें कि नाव डुबनेको तैयार हुई थी उसी क्षणमें दो कंबल और संबल नामक देव भक्ति भावसे प्रभुप्रति प्रेरित होकर वहां आये और प्रभुके निमित्त दूसरोंके प्राणोंका नाशसमझ उन्होंने शीघ्र ही उस नावको ; किनारे पर लाकर लगादी। वहां पर दोनों देवोंने प्रभुसे वंदनाकी। पश्चात् अपने स्थान पर चले गये। इस विकट प्रसङ्गमसेभी निकल जानेसे क्षमानिधान प्रभुने सुदृष्टपरक्रोध भाव और उपकार करनेवाले उन देवों पर राग भाव नहीं दर्शाया । देह सम्बन्धी साता और असाताके प्रसनों पर न तो वे हर्षित हुए थे और न शोकातुर हुए