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________________ ( २६ ) .का न लेते उन्होने उसी मार्गको हाथमें लिया जिससे उसका कल्याण हो जाय मूर्खके साथ मूर्ख होनेसे उसका स्वत्व तो लूटा जाता है इतना ही नहीं परन्तु उसके साथ मिलनेवालोंका भी साथमें लूटा जाता है | सर्पने अपने स्वाभानुसार प्रवृति की और प्रभुने अपने प्रभुत्व योग्य प्रवृति की उस पर अपने उपशम रसका सिंच-नकर उसकोके ठिकाने लाया और उसी समयसे सर्पने अपना हिंसक स्वभाव छोड़ दिया और पश्चातापमय जीवन गुजारने लगा। अपनी इस दुःखमय स्थितिमें क्या हेतुभूत था उसको अच्छी तरह समझनेसे भूतकालके स्वभावको त्याग दिया उसने जितनी उग्रतासे पहिले क्रोधका सेवन किया था उतनी ही उग्रतासे वह शान्ति और क्षमाका सेवन करने लगा इतना ही नहीं परन्तु रास्तेमें चलनेवालोंकी तरफ देखना तक छोड़ दिया। लोग उसके शरीरपर हाथ लगावे लकड़ी मारे तो भी उसने इधर उधर होना अथवा करवट लेना खाली नहीं परन्तु आहार आदिको भी छोड़ दिया । चीटियें उसके कलेवरके चारो ओर फिर गई और अमित वेदना करने लगी। तो भी उसने पहिले जिस वीर्यको अनिष्ट करने में स्फुरायमान किया था उसी वीर्यको अब परम अर्थके लिये स्फुरायमान करना योग्य समझा। अतएव चींटियेंन - दव जायँ इस डर से उसने करवटे लेना बंद कर दिया, आखिर में काल क्रमसे करुणाके परिणामवाला सर्प यह देह छोड़कर सहस्रार देवलोकमें देव हुआ | वर्त्तमानकालमें अनेक महाजनोंके नजदीक, उनके शान्ति बलसे, हिंसक जीवोंने अपनी खराब वृत्तियें छोड़दी हैं । स्वामी रामतीर्थ अनेकवार सर्प आदि जहरी जंतुओंके सहवासमें दिनके
SR No.010528
Book TitleMahavira Jivan Vistar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi
PublisherHindi Vijay Granthmala Sirohi
Publication Year1918
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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