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________________ (२१) जा सकता है। किसी भी प्रकारकी वलवान चित्तस्थिति उपयोगी गिनी जाती है चाहे वह इष्ट हो अथवा अनिष्ट । कारण कि दोनों बरोबर सामर्थ्य सम्पन्न हैं । सिर्फ फर्क इतना ही है कि वर्तमान शुभमें और दूसरे क्षणमें अशुभ लगा रहता है। तो भी दोनों शक्ति और कार्यक्षमताकी अपेक्षा बरोबर गिनने योग्य हैं। जिस शक्तिके ये शुभाशुभ परिणाम हैं, उस शक्तिकी हमें सदा प्रशंसा करना चाहिये । कच्चे अन्नको स्वादिष्ट पकवानके रूपमें पका देनेमें और अनेक उपयोगी वस्तुओंको भस्मीभूत करनेमें ज्यों अग्नि एक ही है त्यों शुभ और अशुभमें कर्तव्य परायण शक्ति आत्माके एक ही अंशमेंसे उद्भवित होती है। मात्र इसका उपयोग अच्छी अथवा बुरी दशामें करना ही सिरफ अवशेष रहता है । वहुत मौकों पर हमारी समझ भूलसे भरी हुई प्रतीत होती है कि हम तीव्र और अनिष्ट प्रकृतिको बहुत करके धिक्कारते हैं। परन्तु साथमें यह देखना भूलजाते हैं कि जो शक्ति इतना अधिक कार्य करनेको समर्थ है वही शक्ति इष्ट दशामें कार्य 'करनेकी योग्यता रखती है।जो चक्रवर्तीसातवेंनरकमें जाने जितने तीव्रकर्म उपार्जन कर सकता है वह उसी कर्मको करनेकी शक्तिको यदि शुभ कार्यकी ओर लगा दे तो बहुत शीघ्र मोक्ष सुखका भोक्ता हो सकता है । वस्तुतः हमारा अधिकार प्रवृत्ति शून्यता की ओरहोना चाहिये । जो कुछ भी शुभाशुभ करनेको समर्थ नहीं है, गले हुए बादल की नाई जो जरा भी पानीको नहीं वर्पा सकते हैं, अचेतके माफिक जो जगतकी सत्ताकी ठोकरें खाया करता है, जिसकी पामरता, भोगलालसा, दारिद्रय. और प्रमादकी अवधि
SR No.010528
Book TitleMahavira Jivan Vistar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi
PublisherHindi Vijay Granthmala Sirohi
Publication Year1918
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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