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________________ [७८-7 कि उसको अपना कुछ जरूरी काय याद आया और वह अपने बेलोंको प्रभुको सौंपकर या उनकी निगाह घष्टि रखनके लिये कहकर चला गया। प्रमुके सर्व तरहकै बाहिरं' योग; तबतक अडकी नाई संवरित होनेसे उस गढ़रियाके कहनेपर अथवा बैल अपने म्मीपमें हैं इस पर उनका ध्यान नहीं था । गद्दरिया यह समझा कि प्रभुने मेरे कहनेके उत्तरमें मौन ही रखा है परन्तु उन्होंने मेरे कहनेको स्वीकार लिया है । गंदरिया यदि प्रभुके आत्मस्थितिको समझसका होता तो प्रमुको प्राप्त होनेवाले दुःखद प्रसङ्गका समवं यंहासे ही रुक जाता। परन्तु यो दुनिया सों में नीन्यानवे प्रसङ्गों में विरोध खड़े होनेमें एक दुसरेकी गैर समझ ही कारण भूत है । त्यों इस गरियेसे बैल सम्हालनेक भलामणके विषयमें भी बना है। प्रमु पीछेसे कैलोंको सम्हांल लेंगे और उनकी ऐसा करनेकी इच्छा नहीं होती तो ये उस समय इनकार कर देते; इसी खयालसे गड़रिया बैलोको प्रमुके पास रखकर अपने कार्य पर शीघ्रतासे चला गया । प्रमुको तो गढ़रिया, बैल अथवा भलामणं इन तीनों से एक भी बातकी खबर न थी। हुआ भी कुछ ऐसा ही कि वैलं वरनेके लिये मिन्न २ दिशामें चले गये। बहुत देर बाद गरिया वापिस आकर देखता है तो वहांपर वैल नहीं थे। प्रमुको वैलोंके विषयमें पूछा परन्तु वे क्या उत्तर देते तो अपने पूर्वकी मौन प्रतिज्ञामें खड़े थे अतएवं उसको उनकी ओरसे कुंछ उत्तर नहीं मिली इस परसे मूर्ख गढ़रियेने यह खयाल बांधा कि इसतरह निरुत्तर रहने में और बैलोंका योग्य पंता न देनेमें प्रमुकी अवश्य बंददानं त होनी चाहिये। वार र अपने वैलोंका पंतो हासिल
SR No.010528
Book TitleMahavira Jivan Vistar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi
PublisherHindi Vijay Granthmala Sirohi
Publication Year1918
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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