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________________ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास - परमाणु एक समय में १४ राजूलोक शिखरपर शीघ्र गति से गमन कर जाती आदिका कथन सूक्ष्म विचार और कर्म फिलासबी यह जीव अनादिसे कम्मोसे कन्धा और उनसे मुक्त होनेकी व्यवस्था कर्म जड़ चेतन दो प्रकारके यह कथन और दर्शनोंमें नहीं कर्म तो कहते मोह अहंकारादिक है पर जड़ चेतनका विवेचन नहीं और ये कर्म कहाँ रहते कैसे वन्धन होता यह विवेचन नहीं नव्यन्याय में अबच्छेदक धर्मका कथन है सूक्ष्म विचार है न्यूनातिरिक्त देशाऽवृत्तित्वं अवच्छेदकत्वं इसको अगुरु लघु गुण कहना चाहिये। यह जैन सिद्धान्तसे ही मूक्ष्म विचार की उपलब्धि है। ऐसा प्रतीत होता है। अवच्छेदका ज्वच्छिन्न विचारको लोग कह बैठते हैं। माथा खानेकी पचानेकी बात है समझ में तो आता नहीं। तब ऐसा कहना होता है और बंगालमें भी जैन धर्मका अधिक प्रचार रहा। बंगाली भाइयोंके नाम विमल बाबू कुन्थु बाबु पारस बाबू आदि चौबीस तीर्थ करोंके नामसे चले आते हैं और कर्णाट देश में राजा भोजवंशीय वल्लाल वंशीय राजा क्षत्रिय अधिक रहै। अब भी सार्वभौम आदि है।
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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