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________________ * श्री लॅबेचू समाजका इतिहास * नौकरको पुकारता है। दुध नहीं लाया नौकर कहता है कि मैं परोस तो आया। दूध आपने पी लिया ज्यादा काम वढ़नेसे इतनी व्याकुलता बढ़ जाती है तो फिर यहाँ कोई प्रश्न करै कि समाजमें कोई बड़ा आदमी होगा ही नहीं सो नहीं अब तो समाजमें इतने बड़े है नहीं जितने पूर्व समयमें थे। भरत महाराज सरीखे चक्रवर्ती और श्री शान्ति कुन्थअरह ये तीनों तीर्थङ्कर चक्रवर्ती कामदेव तीन-तीन पदवियों के धारक और श्री रामचन्द्र, लक्ष्मण, कृष्णजी, बलभद्र आदिक बलभद्रनारायण पदवी धारी ६ खण्ड। तीन खण्डके राज्याधीश हुए। इन्होंने संसार की लक्ष्मीको केवल संसारके कार्योंका साधक जान धारण करते रहे। परन्तु अपनी अन्तरङ्ग ज्ञान लक्ष्मीको अपना ध्येय समझ वहिर्लक्ष्मीको वाह्य कार्यकी साधक समझ लिप्त नहीं रहे। लालच, लोभ, तृष्णासे दूर रहे। तब तो कारण पाय इस लक्ष्मीको असार जान लात मार चले गये। तश्चरण कर मोक्ष लक्ष्मी प्राप्त की। भरत महाराजने वस्त्र उतारते-उतारते दिगम्बरी दीक्षा धारण कर केवल ज्ञान प्राप्त किया। आजकल तो मोक्ष नहीं होता और यह लक्ष्मी तथा कुटुम्ब परिकर साथ भी नहीं जाता। करते रहे। लक्ष्मीको बाणासे दूर रह
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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