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________________ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ३५ मूर्ति कसोटी पाषाणकी श्री बटेश्वर जमुना किनारे जिन मन्दिरकी प्रतिष्ठा हुई है लेख है। इस सम्बन्धमें हमें इन बातोंका पता लगानेकी आवश्यकता है कि सूरीयुर, ग्वालियर, अटेर इनकी गद्दीकी पट्टावलीके आचार्य तथा भट्टारक गुरुओंकी शिष्यतामें कितने-कितने जैन क्षत्रिय आदि रहे हैं। और, उन्हींके शिष्य लम्बकञ्चुक लँबेचू रहे। तब लँवेच लोग राजपुरोहित पटिया लोगोंकी बहियोंसे तथा परम्पराके पुराने लोगोंके कथनसे यह विदित है कि यदुवंशी जैन क्षत्रिय हैं और लम्बकाञ्चन देश राजा लम्बकर्ण या लोमकरण राजाने बसाया। उसके रहनेवाले लम्बकंचुक का अपभ्रंश लँबेचू कहलाये। और, उनके कृष्णविजयी आदि गोत्र लिखे हैं तथा यह भी कथन है कि विक्रम संवत् १४६ में लम्बकाञ्चन देश छोड़ मारवाड़ देशमें आये और वहाँ ६६६ वर्ष ताई रहे, इक्कीस पीढ़ी ताई वहाँ ही रहे। पीछे पूरब देशमें अन्तरवेदमें वहाँका राजा पञ्चकुमर तिनके साथ आये ११५२ की वर्षमें राजा चन्द्रसेन उनके बंशधर चन्दवरियाओंने चन्दवार बसाया। फिरोजाबादके पास पुरानी वस्ती है, जहाँपर श्री वृटिश सरकारकी तरफ
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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