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________________ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ४०१ वंशमें राजा अमोघवर्ष हुये इन्होंने प्रश्नोत्तर रत्नमालिका बनायी । प्रणिपत्य वर्द्धमानं प्रश्नोत्तर रत्नमालिकां वक्ष्ये नागनरामर वन्द्यं देवदेवाधिपंवीरम् १ इनको यदुवंशी लिखा है और जैन इतिहास बड़ा है यह संक्षपमें लिखा है राजपूताना इतिहास में लिखा है, haarat वाक्पतिराजकी पदवी थी और चौहानों में लिखा है इसी वंश महाराष्ट्रवंश में भोसले साहब मरहठा थे इनका राज्य कटक में था और इन्हींके वंशजोंका या दूसरा कोई राजाका राज्य पुरी जगन्नाथपुरी में रहा हो । जगन्नाथ पुरी और कटक में थोड़ा ही फर्क है, कटकमें परवार जैन भाइयोंके चार-पाँच घर हैं । एक ईश्वरदास परवार जैन आसूदा अबक रहे हैं अब उनके लड़के बच्चे हैं। इनकी जिमिदारी भी कुछ हो इन्हींके पूर्वजों का एक जिनमन्दिर खण्डगिरी पर्मतपर है जो भुवनेश्वर स्टेशन से ५ कोश है खण्डगिरी पर्वतसे सटा ही उदयगिरि पर्वत है इन दोनों पर्वतों पर सात सौ गुफायें हैं । जिनमें दिगम्बर जैनमुनि तपश्चरण व ध्यान करते थे। उनके रहने, परने बैठने से २६
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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