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________________ ३६६ * श्री लँबेचू सगाजका इतिहास * के पास पहुंचे। उनकी गद्दीमें बातचीतकी। ईडर जानेको बैठे रहै वहां हमें प्यास लगी। हमने पानी न मांगा। उनकी गद्दीमें एक घड़ा मट्टीका पानीका ठंडा रखा रहा किसीने पानीकी पूछी नहीं हमने मांगा नहीं । जब हम वोर्डिङ्गमें आये हमने कहा कि आज तो प्यासके मारे मर गये । किसीने पानीकी न पूछी तो प्रमीजी कहने लगे कहीं पीतो नहीं आये हमने कहा नहीं क्या बात थी तब उन्होंने कहा कि वह सब जूठा पानी होता है। लुमड़ोंमें चाल हैं कि उसी घड़में गिलास जूटा डवोदेइंगे। पानी पीलेंगे। फिर डवो देंगे तब हम विचार किया। इस समय तो लँबेचूपन काम देगा या ठीक है बिना पूछ ताछे नहीं कोई चीज मांगना चाहिये तो लमेचुओंमें यह स्वाभाविक बात है कि बिना आदर कोई चीज ग्रहण नहीं करते और तो क्या जब सिंहलद्वीपमें राजा जितशत्र तापसके आश्रममें रहता था। उनकी कन्याने कहा है मालवेके राजा महीपाल कुमरको कि तुम मेरे साथ विवाह कर लो तब महीपालने जवाब दिया तेरे पिता मुझे आदरसे कहकर परणावेतो परण नहीं तो नहीं ये भी मालवेके चोहानो में ही थे। अब
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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