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________________ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ३६१ अश्विनी, हस्त, स्वाती आदि लिखित नक्षत्रों में स्नान कराकर सुहागिलचोकपर कर एक पाटारख उसपर पुत्रको गोदमें लेकर बहू पाटापर बैठती। कन्या सुहागिलसे अखड़वलिवाती ( अखड़व ) में गोझा पूड़ी पपड़ी आदि लाड़ आदि एक छबीलीमें टोकरीमें रख सुहागिलको गोद में देती। बच्चाके हाथमें तोर घघाती माता उस अखडवको सुहागिलको देती यह छटवी ही क्रियामें सामिल है या ७ वां संस्कार है। तब तीरका देना यह भी क्षत्रित्व प्रमाणित करनेवाली है और वहिन क्रियामें बालकको जिन मन्दिर ले जाते तिलक कराते, भेट देते, दठोन संस्कारमें मुखजुठ राते, खीर आदि खिलाते, आदि प्रायः सब संस्कार होते हैं। ओरोंमें भी बहुतसे संस्कार होते हैं। बहुतसे नहीं जब विवाहमें बरात जनमासे पहुंच जाती तब समधीके दरवाजे पर तोरणपर आते पहले लडकीके तरफसे छता आजावै तव चलते हैं। छता एक छत्रका अनुकरण हैं। राजछत्र क्षत्रियोंके प्रतीक हैं। इस समय सब जगह छत्र नहीं मिलता। जरीका छाता किसी बड़े आदमीके वैसे
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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