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________________ rrnwww *श्री लंबेचू समाजका इतिहास * ३३ बंगाधीशकी कन्या न्याही थी और ये बड़े विजयी हुए। इनका बड़ा भारी इतिहास है। मुझे स्मरण है शिशुपालवध माघ काव्यमें भी शायद रुक्मिणीको चंदी नरेशकी कन्या बतलाया है और गुप्तिगुप्त मुनि भी परमार जाति क्षत्रिय वंश जो चन्द्रगुप्त राजाका वंश होता है यह भी यदुवंशमें से ही हैं उसी वंशमें विक्रम संवत् २६ में हुए हैं। और राजा चन्द्रगुप्त सन् ईस्वीसे ३२१ वर्ष पूर्व हुए हैं जो कि विक्रम संवत् २६४ वर्ष पूर्वमें होते हैं। उन गुप्तिगुप्त मुनिके पश्चात् माघनन्दि आचार्य संवत् ५२ में हुए और उनके पश्चात् संवत् १४२ में श्री लोहाचार्य लँबेच हुए ऐसा सूरीपुर (वटेश्वर ) की पट्ठावलिमें लिखते हैं। और गुप्तिगुप्त मुनिके शिष्य प्रशिष्योंमें अर्ककीर्ति मुनिको एक जैन मन्दिर बनवानेके लिये इन्दीगुरदेशमें जलमंगल नामक एक ग्राम अकालवर्ष प्रथम कृष्णके पोता गोविन्द तृतीयने मयूर खण्डी ( नासिक ) में थे जब उन मुनिको दिया जो कि हरिवंशपुराणके कर्ता जिनसेन स्वामी शक संवत् ७०५ में हुए हैं उनके अमोघवर्ष शिष्य थे ऐसा एक दानपत्र ताम्रयन्त्र है उसमें लिखा है। इन्हीं तृतीय गोविन्दके
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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