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________________ ३८० * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * नामसे परियागोत्री कहलाने लगे। श्रीमान् ताराचन्द रधरिया आगरा फेजलावादी कहलाते हैं ख्यालीराम अमोलचन्दके फार्मके वहाँसे आये और बाहपर कचनाउरसे गये। जिससे कचनाउर वाले रपरिया कहलाये। कचनाउर भिंडके पास ही है। कचनाउरवाले रपरियाओं का १ घर भिंडमें था। भिंण्डमें उनके घर पर चैत्यालय था । उसकी प्रतिमो वाह पर गई। उन्हीं टोडरमल परिया की बहिन हमारे बाबा मंगलचन्द (मङ्गलसेन को व्याही थी उन्हींके सहारे हमारे बाबा इटावा से भिंड गये। बाद के पास पान्नो नदिगँवा प्यारमपुरा जैतपुर (जैत्रसिंहको) अनुकरणसे रखा गया हो। शाहपुरा जहां रावत गोत्रके लमेचू रहते हैं जो भास्करमें भाग १३ में किरण १ में चन्द्रपाल राजाके दीवान रामसिंह हारुलने वि० सं० १०५३।१०५६ में कई प्रतिष्ठा कराई लिखा है । - एक जगह ५१ जिन प्रतिविम्ब प्रतिष्ठा कराई लिखा है। एक प्रतिष्ठा १४२८ में हुई उसी हारुल हाहुलीराय के वंशज रावत गोत्रीय शाहपुरामें तिलोकचन्द चिम्मनलाल बसते हैं और वटेश्वर के पास जमुनापार मही गांवमें रावत
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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