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________________ ___ * श्री लॅबेचू समाजका इतिहास * का उपदेश देकर तमहरण करनेवाले अथवा माथुर गच्छ रूप आकाशको समीरण हवासे विविध सज्जन लोगोंके मन रूपमेघोंको हरणकरनेवाले अर्थात् मनोहर और मतिबर मुपट्टाधीशके पदपर बैठनेवाले अर्थात् भट्टारक भवजलणिहि णिवड़णकायरेण । घोर संसारसमुद्रसे भयभीत समस्त गुणोंके आलय श्री वासुदेव मुनिने श्रीधर भन्य प्राणी श्रावककी भक्तिपूर्वक हाथ जोड़ विनतीसे भविष्यदत्त कथाका प्रसङ्ग कहा यह अर्थ प्रतीत होता है और रइधू कविकी पुण्यास्रव कथाकोशे कवितामें ( अवगाहिउजिआहवसमुद्द ) इस पदसे अवगाहित किया है आहब समुद्र जिसने अर्थात् आहवमल्ल राजाके वंशरूपी समुद्रका यह रत्न वंशधर प्रतापरुद्र चिरकाल आनन्दको प्राप्त रहै। ऐसा अर्थ प्रतीत होता है और वासाधर मंत्री भी जायस और जैसवाल नहीं हो सक्तं । चन्दवाड़में कुल परम्परासे लमेचुओंका ही प्रसङ्ग है। यहां जायस और जैसवाल का प्रसङ्ग नहीं हमारे समझमें जैसे जैन सिद्धान्त भाष्कर भाग १३ किरण १ में श्रीयुत् पं. जगन्नाथ तिवारीजीने वि० सं० १०५२ में चन्द्रपाल राजा चन्दवारका दिगम्बर जैन पल्लीवाल राजा हुआ।
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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