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________________ ३५४ *श्री लँबेचू समाजका इतिहास - हड़दा हरदादेश बसाया । अब भी हरदामें लँबेच बसते हैं। कुछ करहलसे भी गये हुये हैं और मुझे ऐसा अनुमान होता है कि कृष्णादित्यका अपभ्रंश कल्हण कहड़का हो गया हो क्योंकि कृसेकर हलड़से हल अपभ्रंश होकर करहल कसवा बन गया। करहलका पुराना नाम कुड़ेल भी सुनते हैं। (कल्हण) का अपभ्रंश कुड़ेल होने सके हैं। करहलमें जब मेरा विवाह संवत् १९५५ भया था । तब लँबेचुओंके घर ४५० थे। अब भी दोसो पोनोदोसे के करीब हैं और रायवड़िढय (राजवर्द्धित) नगरी यही हो या रायनगर ये दोनों यमुनाके उत्तर तटमें हैं। जमुनाका बहाव दूर हो जानेसे कुछ करहलसे ८ कोश और रायनगर से ८ मील है। जमुना तट जसवन्तनगर से दक्षिणमें हैं और अनेकान्तपत्र ३४६।३४७ में वर्ष ८ केमें भविष्यदत्तका चरित्र अपभ्रंश का कुछ अंश देकर श्रीमान् परमानन्द जैन शास्त्रीजीने चन्दवाड़के लेखमें लिखा है कि माथुर कुलके नारायणके पुत्र और वासुदेवके बड़े भाई मतिवर सुपट्ट साहकी प्रेरणासे यह अर्थ नहीं है। उन पद्योंका कारण चन्दवाड़में माथुर गच्छकी विक्रम सम्बत १००० एक हजारकी प्रतिमायें अनेक हैं। .
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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