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________________ ३० * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * पंचलगुड़िक ( जैत्रमल्ल ) की खिताब थी। उन जैत्रमल्लके साथ रणांगणमें युद्ध कर अपना बल जैत्रसिंहक ( जेसलकार्य के समय दिखाया ) तला रक्षक क्षेमका पुत्र ( भूत्ताला गांव मेवाड़की पुरानी राजधानी थी ) रत्न के छोटे भाई मदनने अपना बल दिखाया। वि० संवत् १२८४ वर्षे फाल्गुणनामावास्यां सोमे अयह श्रीमदाघाटदुर्ग समस्त राजावली समलं कृत महाराजाधिराज श्री जैत्रसिंह देवकल्याण विजय राज्ये । तन्नियुक्त महामात्य श्री जगत्सिंहे समस्त मुद्राव्यापारान परिपन्थ तीत्येवंकाले प्रवर्तमाने शाह उद्धरमनुनाशाह हेमचन्द्रण दशवकालिक वाक्षिकसूत्र ऊर्यनियंक्तिसूत्रपुस्तिका लेखिता और भी १ गद्य है यह आघात दुर्ग ( आहाड़में लिखी हुई आवक प्रतिक्रमण सूत्रचूर्णि नामक पुस्तक मिली है। उसका है ( पीटर्सनकी तीसरी रिपोर्ट पृ० ५२ राजपूताने का इतिहास पेज ४७१-७२-७६ तक बहुत विवरण है पेज ४६०। श्रीमद्गुर्जर मालवशतुरुष्क शाकंभरीश्वरैर्यस्य । चक्रनभानभङ्ग सः स्वस्थो जयतु जैत्रनृपः ।६। (घाघसेकाशि०)
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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