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________________ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ३४७ टाँटरऽजतिमें उत्पन्न उद्धरण देवको राणामथन सिंहने तलारक्ष कोतवाल नगर रक्षक नियुक्त किया। दसरे ११वें श्लोकका आशय यह है कि उन उद्धरण के ८ पुत्र हुये। उनमें प्रथम ज्येष्ठ योगराज था। उन राणा मथनसिंहके पुत्र पद्मसिंह उत्तराधिकारी मेवाड़के हुये । श्री पद्मसिंह भूपाला द्योगराजस्तलारतां नागद पुरे प्राप पौर प्रीति प्रदायकः उन पद्मसिंह राजासे योगराजने तलारता पाई नागदापुरमें पुरवासियोंको प्रीतिदायक थे जोश्री जैत्रसिंहस्तनुजोऽस्य जातोऽभिजाति भूभृत्प्रलयानिलाभः सर्वत्रयेनस्फुटता न केषां चित्तानि कंपं गमितानि सद्यः ।। न मालवीयेन न गुर्जरेण न मारवेशेन न जांगलेन । म्लेच्छाधिनाथेनकदापिमानो म्लानिननिन्येऽवनिपस्ययस्य ६ उन राणा पदमसिंहके पुत्र जैत्रसिंह भये । जो तमाम राजाओंरूपी पर्वतोंको प्रलयकालका पवन माफिक था। जिस जैत्रसिंहने किन राजपुत्रोंके चित्तको न कपाया अर्थात् सबको कँपा दिया। मालवाके राजा, गुजरातके
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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