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________________ -... " ---- - * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ३४१ हीरालालजी को नागोरके सरस्वती भण्डारसे ही तो मिला है। इन लँबेच चोहानोंका रहनेका और भी प्रतीक दृढ़ सबूत ऐतिहासिक होता है और चोहानोंका मलयखेट मालवेमें और हाडावती (हड़दा) आदिमें चौहान वसे तब हाड़ा कहलाये हाड़ों भी चोहानों की शाखा राजपूताने, उदयपुर इतिहासमें ओझाजीने लिखा है। दूसरे हरदामें पहिलेसे लमेचू चोहानों का रहना था तब तो करहलसे रिश्तेदारी आदि सम्बन्ध से लमेबू सँघई बजाज चंदोरिया वहां पहुंचे। अब भी हैं और इन्दौर सनावद आदि में भी है। कुछ तो अभी गये हैं और विक्रम संवत् १३१३ अणुवय पदीपके कथनानुसार राजा भरतपाल सांभरी नरेश क्यों कहलाये । राजा माणिक रावने (शिवजीराम) सोजीरामको अपनी देशकी दीवाणगी दीनी विक्रम संवत् १६६ वे में और शाह सोजीरामके जरिये सांभर में निमक पेदायस भयो जब माणिकरावने साह सोजीरामको ८४ चोरासी गड़ों (किलों) का राजभार शाह सोजीराम को दीनो (सोजीराम को स्यात् सहजिग भी कहीं लिखा है) सोजीरामके बेटा सवहरण प्रधान रहै छोटे भाई हरकरण
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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