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________________ ३३८ श्री लँबेचू समाजका इतिहास - असकरणकी बादशाहीमें भी मान्यता हुई। जहाँगीरके यहाँ फिर राणा सुमेरशाहक संग्रामसिंह, तिनके प्रधान मंत्री जशवन्तसिंह सहसमल्लके पुत्र और संग्रामसिंहके पुत्र राणा चक्रसेन, उनके शाह करणमल्ल, उनके खड्गसिंह, उनके विक्रमाजीत, उनके २ पुत्र भये-अगरसिंह ( अगरसाह) और राणाप्रतापरुद्र ( प्रतापसिंह )। ये वंशावलीमें स्पष्ट रीतिसे लिखे हैं। गजेटियरमें लिखा है कि राणा सुमेरसिंहके आठवीं पीढ़ीमें प्रतापसिंह ( प्रतापरुद्र ) भये, जिन्होंने प्रतापनेहर का किला बनवाया और राणा अगरसिंह ( अगरसाहेन ) सकरोलीके राजा भये। सकरोली एटा जिलेमें है और इटावा तहसीलका एक गाँव जाखन है। जिसमें रहनेसे लवेचुओंका एक गोत्र अलल जखनिया भया और बकेउर से बकेवरिया और इसी लँबेचू चोहान वंशमें राजा रपरसेन से रपरिया गोत्र अलल भया तथा कोटरा (यहीकुण्डलपुर) यही कुदरकोट वहाँ रहनेवाले कुदरा कहलाये और राणा रपरसेनकी पुत्री नोरंगीक नामसे रपरी वटेश्वर ( सूरीपुर ) के बीचमें जमुनाके घाटका नाम नोरंगीघाट कहलाता है ।
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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