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________________ * श्री देवेचू समाजका इतिहास * दक्षिणी ब्राह्मण जो बनारसमें श्रीमान् महामहो पाध्याय - श्रीवालशास्त्रीके शिष्यों में थे जिनके सपाठी श्रीमान् दामोदार शास्त्री व्याकणाचार्य श्रीमान् साहित्याचार्य गङ्गाधर शास्त्री बनारससे सं० १६५३।५४ में से ६० तक काव्यकादम्बिनी एक कविताओंकी लेख माला निकलती थी वे उसके सम्पादक थे। उसमें सबकी कवितायें निकलती थी वे परीक्षाके समय मार्चमें परीक्ष्य छात्रोंको पर्चे बाँटते थे व्याकरणाचार्यषष्ट बोलकर पर्चे बांटते थे। हम उस समय सं० १६६० में व्याकरण मध्यमा देने गये थे। तब वे काव्य कादम्बिनीमें छापते थे। गङ्गाधरोपितनुते सरसप्रसाद' वे तेलङ्गब्राह्मण नाटेसे काले थे। उस समय नैय्यायिक भागवताचार्य परिष्कारज्ञ कुप्पाशास्त्री और तांतिया शास्त्री थे। और मैथिली ब्राह्मण शिव कुमार शास्त्री ये सब महामहोपाध्याय थे। ये सब रघुपति शास्रीके सपाठी थे। हमारे कहनेका तात्पर्य यह कि उस समय तक यह बात सुनी जाती थी। पुराने आदमी कहते थे और जो आचार्यों की पट्टावली हमने पूर्व इतिहासमें दी थी। वह इसमें भी देंगे पट्टावलीमें तो बनारसमें बादजी तो इतना
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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